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ओं नमः सिद्धेभ्यः काशीनिवासी कविवरवृन्दावनविरचित
प्रवचनसार
मंगलाचरण । पट्पद । स्वयं सिद्धिकरतार, करे निज कर्म शर्मनधि । ओपै करण स्वरूप, होय साधन सोधै विधि । संप्रदानता धेरै, आपको आप समप्पै ।
अपादानतें आप, आपको थिर कर थप्पै ॥ अधिकरण होय आधार निज, वरतै पूरणब्रह्म पर । इमि षट्विधिकारकमय रहित, विविध एक विधि अज अमर ॥१॥
दोहा। महततत्त्व महनीय मह, महाधाम गुणधाम । चिदानन्द परमातमा, बंदौं रमताराम ॥ २ ॥ कुनयदमनि सुवचन अवनि, रमन स्यातपद शुद्धि । जिनवानी मानी मुनिप, घटमें करहु सुबुद्धि ॥ ३ ॥
चौपाई। पंच इष्ट पदके पद वन्दों। सत्यरूप गुरुगुण अमिनन्दों । प्रवचनसार ग्रंथकी टीका । बालबोध भाषामय नीका ॥४॥
१. यह प्रथम मंगलाचरण षट्पद पं. हेमराजजी कृत है। २. तेज। ३. मुनिराज ।