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पीठिका
द्वितीय सिद्धान्तोत्पत्ति (कवित छन्द) बहुरि एक गुणधर नामा मुनि, भये तिसी पथमें परधान । तिनको ज्ञानप्रवादपूर्वका, दशम वस्तुका त्रितिय विधान ।। तिस प्राभृतका ज्ञान रहा तव, तिनसों नागहस्ति मुनि जान । तिन दोउनतें यतिनायक मुनि, तिस प्राभृतको पढ़ा निदान..॥५१॥ तब यतिनायक सुगुरु कृपाकर, तिसही प्राभृतके अनुसार । । सूत्र चूर्णिकारूप रचा सो, ह हजारका शास्त्र उदार ॥
ताकी टीका समुद्धरन गुरु, रची सु बारह सहस विचार । । यो आचारज परम्पराते, कुन्दकुन्द मुनि ताहि निहार ॥५२॥
दोहा। इस सिद्धान्तरहस्यके, कुन्दकुन्द गुरुदेव । रसिक भये ज्ञाता भये, नमो तिन्हे वसुमेव ॥ ५३ ॥ यों दुतीय सिद्धांतकी, है उतपत्ति पुनीत । परिपाटी परमान करि, लिखी इहां निरनीत ॥ ५४ ॥
मनहरण ( ३१ वर्ण) यामें ज्ञानको प्रधान करिके प्रगटपने, :
शुद्ध दरंबारथीक नयको कथन है ।. . . अध्यातमबानी आतमाको अधिकार यातें, . ___ याको शुद्ध निश्चैनय नाम हू कथन है ॥ वथा परमारथ हू नाम याको जथारथ,
' इहां परजाय नय गौनता गथन है ।। परबुद्धित्यागी जो स्वरूप शुद्धहीमें रमें, .. ...... सोई कर्म नाशं शिव होत यो मथन है ॥.५५ ॥ .