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पौठिका५ - सत्यार्थ मोक्षमार्ग प्रवृत्तिका कथन । श्रीमत वीर जिनिंद जब, किन्हों शिवपुर गौन। तब इत वासट वरस लगि, खुल्यो रयो शिव भौन ॥ ३१ ।। गौतम स्वामी शिव गये, फेरि सुधीम्याम । पुनि जग्यू स्वामी लही, मुक्तिधाम अभिराम ॥ ३२ ॥ ऐसे पंचमकालमें, वासट वरस प्रमान । राह्मो केवलज्ञान इत, अमतम-मंजन-मान ॥ ३३ ॥ ता पायें शुतकेवली भये पञ्च परधान । .. वरण एक शतके विप, पूरन ज्ञाननिधान ॥ ३४ ॥ तिस पीछेसो एकसौ. व्यासी वरण मझार । ग्यार अन्न दशपूर्वधर, भये ग्यान अनगार ॥ ३५ ॥ वरस दोयसौ बीसमें, तिन पीछे मुनि पञ्च । मये इकादश अमके, पाठी समकित संच । ३६ ॥ . तिस पीछेसों एकसौ, ठारे वरण मझार । चार भये अनगार वर, एक अनके धार ।। ३७ ।।
श्री जन सिद्धान्तोंकी रचना सम्बन्धी कथन
कवित्त छन्द (३१ मात्रा) भद्रबाहु अन्तिम श्रुतकेवलि, जब लग रहे यहां परधान । तबला द्वादशांग शासनको, रह्यो प्ररूपन पूरनज्ञान ॥ तर निश्चय व्यवहाररूप जो, शिवमारगका सुखद विधान । . . सो परिवर्तन रह्यो जथारथ, यों भवि वृन्द करो 'श्रद्धान ॥ ३८॥ • mr.me.... :57.sxe.o r meric