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________________ पंचमी चित्तसमाहिढाणा दसा पांचवीं चित्तसमाधिस्थान दशा सूत्र १ ' इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दसचित्त-समाहि-ट्ठाणा पप्णत्ता । इस आहेत प्रवचन में स्थविर भगवन्तों ने दश चित्तसमाधिस्थान कहे हैं । सूत्र २ प्र०-फयरे खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं दस चित्तसमाहि-ट्टाणा पण्णता? उ०-इमे खलु ते थेरेहि भगवंतेहि दस चित्तसमाहि-ट्ठाणा पण्णत्ता। तं जहाप्रश्न- भगवन् ! वे कौन से दस चित्तसमाधिस्थान स्थविर भगवन्तों ने कहे हैं ? उत्तर-ये दश चित्तसमाधिस्थान स्थविर भगवन्तों ने कहे हैं । जैसे तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नगरे होत्या । एत्य नगर-चण्णी भाणियन्वो। उस काल और उस समय मे वाणिज्यग्राम नगर था। यहां पर नगर का वर्णन कहना चाहिए । तस्स णं वाणियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तर-पुरच्छिमे दिसीभाए दूतिपलासए णाम चेइए होत्या । चेइय-चण्णो भाणियन्वो। ____ उस वाणिज्यग्राम नगर के वाहिर उत्तर-पूर्व दिग्भाग (ईशानकोण) में दूतिपलाशक नामका चैत्य था। यहां पर चैत्य वर्णन कहना चाहिए।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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