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की दृष्टि से शाब्दिक हिन्दी अनुवाद भी । व्याकरणिक विश्लेषण में लेखक ने प्राकृत व्याकरण को दृष्टिपथ में रखते हुए प्रत्येक शब्द का मूल रूप, अर्थ विभक्ति यादि का जिस पद्धति से श्रालेखन / परीक्षण किया है वह उनकी स्वयं की ग्रनोखी शैली का परिचायक है । इस शैली से अध्ययन करने पर सामान्य पाठक / जिज्ञासु भी प्राकृत भाषा का सामान्य स्वरूप और प्रतिपाद्य विषय का हार्द सहज भाव से समझ सकता है ।
इस प्रशस्य और सफल प्रयास के लिये मेरे सन्मित्र डॉ. सोगाणी साधुवादार्ह हैं | मेरी मान्यता है कि इनकी यह शैली अनुवाद - विधा में एक नया आयाम अवश्य ही स्थापित करेगी ।
पाढ़ी पूर्णिमा, सं. 2040 जयपुर
म. विनयसागर