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98 संति (अस) व 3 / 2 अक पारणा (पाण) 1/2 अंधा (अंघ ) 1 / 2 वि मंसि (तम) 7 / 1 विग्राहिता (वियाहित ) भूकृ 1/2 अनि. पाणा (पाण) 1/2 पारणे (पारण) 2/2 किलेसंति ( किलेस ) व 3 / 2 सक बहुदुक्खा [ ( बहु ) - ( दुक्ख ) 1/2 वि ] हु ( अ ) = निस्सन्देह जंतवो (जंतु ) 1/2 सत्ता (सत्त) 1/2 वि कामेहि' (काम) 3/2 माणवा ( मारणव) 1/2 अवलेण' (अवल) 3/1 वि वहं ( वह ) 2 / 1 गच्छति ( गच्छ ) व 3 /2 सक सरीरेण ' ( सरीर) 3 / 1 पभंगुरेण' (पभगुर ) 3 / 1 वि
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98 संति = रहते हैं । पाणा = प्रारणी । अन्धा = अन्धे । तमंसि = अन्धकार में | विवाहिता = कहे गए । पाशे = प्राणियों को । किलेसंति = दुःख देते हैं । बहुदुक्खा = बहुत दुःखी । हु = निस्सन्देह । जंतवो = प्राणी । सत्ता= आसक्त । कामेह = इच्छाओं द्वारा इच्छात्रों में । माणवा = मनुष्य | अवलेण = निर्वल | वहं = हिंसा । गच्छति = करते हैं । सरीरेण = शरीर के द्वारा शरीर के होने पर । पभंगुरेण = अत्यन्त नाशवान् ।
99 आरणाए (आरणा) 7 / 1
मामगं ( मामग) 1 / 1 वि या मामगं ( मामा )
2 / 1 विधम्मं (धम्म) 1 / 1 या धम्मं (धम्म) 2 / 1
99. आरणाए = श्राज्ञा में या आज्ञा को । मामगं= मेरा या मेरे ( को ) । धम्मं = कर्तव्य या धर्म को ।
100 जहा ( ) = जैसे से ( अ ) = वाक्य की शोभा दीवे (दीव) 1 / 1 असंदीणे (असंदीण) 1 / 1 वि एवं ( अ ) = इस प्रकार धम्मे ( धम्म ) 1 / 1 आरियपदेसिए [ (रिय ) - (पदेसि ) भूकृ 1 / 1 अनि ]
1. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137)
2. (द्वितीय अर्थ में) सप्तमी का प्रयोग द्वितीया विभक्ति के स्थान पर किया गया है | ( हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137)
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