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अविजाणओ ( श्रविजाणत्र) 1 / 1 वि आणाए (ग्राणा) 6/1 लंभो (लंभ) 1 / 1 णत्यि ( अ ) = नहीं त्ति (प्र) = इस प्रकार बेमि (बू) व 1 / 1 सक. 78 सत्त हि = नेत्रों के द्वारा नेत्रों के होने पर । पलिद्दिेहि = परिसीमित । श्राताणसोतगढिते = इन्द्रियों (के), प्रवाह (में), ग्रासक्त । वाले = अज्ञानी । अस्वोच्छिष्णवंध = बिना टूटे हुए, कर्म वन्वन । अणमिक्कतसंजोए = विना नष्ट हुए, संयोग । तमंसि = अन्धकार के प्रति । अविजाणओ : अनजान । आणाए = उपदेश का । लंभो=लाम । णत्यि = नहीं | त्ति = इस प्रकार । वेमि = कहता हूँ ।
(प्र) = पूर्व में
6
/ 1 स कुश्रो
से (त) 1 / 1
79 जस्स (ज) 6/1 स णत्थि ( अ ) = विद्यमान नहीं पुरे पच्छा ( ) = वाद में मज्झे (मज्झ ) 7/1 तस्स (त) (अ) = कहाँ से ? सिया' (सिया) विधि 3 / 1 ग्रक अनि सवि हु (प्र) = ही पन्नाणमंते ( पन्नाणमंत ) 1 / 1 वि बुद्धे (बुद्ध) 1 / 1 आरंभोवरए [ ( आरंभ) + (उवरए ) ] [ (प्रारंभ ) - ( उवरय) नूकृ 1 / 1 अनि ] सम्ममेतं ( ( सम्म) + ( एवं ) ] सम्म (सम्म) 1 / 1 वि एतं ( एत) 2 / 1 सति = इस प्रकार पासहा" (पास) विधि 2/2 सक जेण (अ) = जिसके कारण बंधं (वंघं) 2 / 1 व (वह) 2 / 1 घोरं (घोर) 2 / 1 वि परितावं (परिताव) 2/1 च (प्र) = श्रोर दारुणं (दारुण) 2/1 पछि दिय (पलिदि) संकृ वाहिरंग ( वाहिरंग) 2 / 1 विच (प्र) = और सोतं (सोत) 2 / 1 णिक्कम्मदंसी [ ( णिक्कम्भ ) - ( दंसि ) 1/1 वि] इह = यहाँ मच्चिएहि (मच्चित्र ) 3 / 2 कम्मुणा (कम्म) 3 / 1 सफलं
1. पिशल : प्राकृत भाषानों का व्याकरण पृष्ठ 685
2. पिशल : प्राकृत भाषायों का व्याकरण : पृष्ठ 136
3. कभी कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137)
4. कभी कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137)
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[ आचारांग