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का अनुमोदन करने वाला । श्रसमितदुक्ले = अपरिमित दुःख में अपरिमित दुःख के कारण । दुक्खी = दुखी। दुक्खाणमेव == ( दुक्खाणं एवं ) दुःखों के ही । आवट्ट - भंवर को भंवर में । प्रणुपरियवृति = फिरता रहता है । त्ति = इस प्रकार । वेमि = कहता हूं |
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39 आसं (ग्रास) 2/1 च' (प्र) = ओर छंद (छंद ) 2 / 1 विगिच (विगिंच) विधि 2/1 सक घोरे (धीर) 8 / 1 तुमं (तुम्ह ) 1 / 1 स चेव (श्र) = ही तं (त) 2 / 1 सवि सल्लमा हट्टु [ ( सल्लं) + ( ग्राहट्टु ) ] सल्लं (सल्ल) 2 / 1. हट्टु (आहट्टु) संकृ अनि जेण (ज) 3 / 1स सिया ( अ ) = होना तेण (त) 3 / 1 स णो (प्र) = नहीं इणमेव [ ( इणं) + (एव)] इणं (इम) 2 / 1 सवि एव ( अ = ही णावबुज्भंति [ (ण) + (श्रववुज्भंति ) ] ण ( अ ) = नहीं. श्रववुज्भंति ( श्रवबुज्झ ) व 3 / 2 सक जे (ज) 1/2 सवि जणा ( जण ) 1/2 मोहपाउडा [ ( मोह ) - ( पाउड 1 / 2 वि ] 39 श्रासं = आशा को । च = - श्रीर । छंदं = इच्छा को । विगिच = छोड़ । धीरे = हे घीर । तुमंतू । चैव ही । तं = उस ( को ) । सल्लमा हट्ट ( सल्लं + ग्राहट्टु ) = विप को ग्रहण करके । जेण = जिस के कारण । सिया = होता है । तेण = उसके कारण । णो नहीं। सिया होता है। इणमेव ( इणं + एव) = इसको, ही । णाववुज्भंति (ण + श्रववुज्भंति) नहीं समझते हैं । जे= जो । जणा = मनुष्य | मोहपाउडा = मोह से ढके हुए । 40 उदाहु' (उदाहु) भू 3 / 1 श्रार्य वीरे (वीर) 1 / 1 अप्पमादी (अप्पमाद) 1 / 1 वि महामोहे, [ (महा) - (मोह) 7/1] अलं (अ ) == पर्याप्त कुसलस्स (कुसल ) 4 / 1 पमादेणं * ( पमाद ) 3 / 1] संतिमरणं [ ( संति) - ( मरण) 2 / 1] सपेहाए (सपेह) संकृ भेउरधम्मं [ ( भेउर) वि (धम्म)
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1. 'और' अर्थ को प्रकट करने के लिए कभी-कभी 'च' का प्रयोग दो बार किया जाता है ।
2. पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृ. 755
3. संप्रदान के साथ अर्थ होता है, 'पर्याप्त' ।
4. 'विना ' के योग में तृतीया होती है। यहां 'विना' लुप्त है ।
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