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22. जे (ज) 1/1 सवि गुणे (गुण) 1 / 1 से (त) 1 / 1 सवि आवट्टे (आवट्ट)
1 / 1 उड्ढ ( अ ) = ऊपर की ओर अहं ( अ ) = नीचे की ओर तिरियं ( अ ) = तिरछी दिशा में पाईणं (अ) = सामने की ओर पासमारणे (पास) वकृ 1 / 1 रुवाई (रुव) 2/2 पासति (पास) व 3 / 1 सक सुणमांगे (सुरण) वक्र 1 / 1 सद्दाई (सद्द ) 2 / 2 पारोति (सुरण) व 3 / 1 सक मुच्यमाणे (मुच्छ) वकृ 1 / 1 रूवेसु ( रूव) 1/2 मुच्छति (मुच्छ) व 3 / 1सक सद्दासु (सद्द) 1/2 यावि ( अ ) = और भी एस (एत) 1 / 1 स लोगे (लोग) 111 वियाहिते (वियाहिते) भूकृ 1 /1 अनि एत्य ( अ ) = यहां पर श्रगुत्ते ( अगुत्त) 1 / 1 वि अणाणाए ( अरणारा) 7 / 1 पुणो पुणो (प्र) : | = बार बार गुणासाते [ ( गुण + (आसाते ) ] [ ( गुरण - (ग्रासात) 7/1] वंकसमायारे [ ( वंक ) - ( समायार ) 7 / 1 वि] पत्ते ( पमत्त ) 1 / 1 वि गारमावसे [ ( गारं) + (आवसे) ] गारं (गार ) 2 / 1. आवसे' (आवस ) व 3 / 1 सक
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22. जे = जो । गुणे = दुश्चरित्रता । से = वह । आवट्टे = चक्कर काटना । उड्ढ - ऊपर की ओर । अहं = नीचे की ओर । तिरियं = तिरछी दिशा में । पाईणं = सामने की ओर । पासमारणे = देखता हुआ । रुवाई = रूपों को । पासति = देखता है । सुणमागे = सुनता हुआ । सद्दाई = शब्दों को । सुरोति = सुनता है | मुच्छमाणे = मूच्छित होता हुआ रूवेसु = रूपों में । मुच्छति = मूच्छित होता है । सद्दे सु = शब्दों में । यावि = और भी । एस = यह । लोगे = संसार । वियाहिते = कहा गया । एत्य = यहां पर । अगुत्ते = मूच्छित । अणाणाए = प्राज्ञा में नहीं । पुणो पुणो = वार बार । गुणासाते ( गुण - प्रासाते ) = दुश्चरित्रता के स्वाद में । वंकसमायारे वंक -समायारे) = कुटिल आचरण में । पमत्ते = प्रमादी । गारमावसे (गारं + श्रवसे) = घर में निवास करता है ।
1. 'आवस' का प्रयोग कर्म (द्वितीया ) के साथ होता है ।
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