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________________ . एवमेगेसि [(एवं + एगेसि)] एवं (अ) = इसी प्रकार. एगेसि' (एग) 6/2 वि गो (भ) = नहीं पातं (णात) 1/1 वि भवति (भव) व 3/1 अक अत्यि (अ) है मे (अम्ह) 6/1 स पाया (आय) 1/1 उववाइए (उववाइअ) 1/1 वि एत्यि (अ)= नहीं है के (क) 1/1 सवि अहं (अम्ह) 1/1 स प्रासी (प्रस) भू 1/1 अक वा (प्र) = या • इसो (अ) = इस लोक से चुते (चुत) भूकृ 1/1 अनि पेच्चा (अ) = आगामी जन्म में भविस्सामि (भव) भवि 1/1 अक शब्दार्थ 1. सुयं = सुना हुआ । मे= मेरे द्वारा । पाउसं हे प्रायुष्मन् ! तेणं भगवयाउन भगवान् के द्वारा। एवं इस प्रकार । अक्सायं कहा गया। इह = यहाँ । एगेसि = कई के -कई में । पो= नहीं । सण्णा = होश । भवति= होता है । तं जहा=जैसे। वाया। पुरत्यिमातो दिसातो पूर्वी दिशा से । प्रागतो पाया । अहं = मैं | अंसिहं । दाहिणालो दिसाओ= दक्षिण दिशा से । पच्चत्यिमातो दिसातो-पश्चिमी दिशा से । उत्तरातो दिसातो उत्तर दिशा से । उड्ढातो दिसातो= ऊपर की दिशा से। प्रधे दिसातो नीचे की दिशा से । अन्नतरीतो दिसातो= अन्य ही दिशाओं से । अण दिसातो= ईशान कोण आदि दिशाओं से । एवं= इसी प्रकार । एगेसि = कई केकई के द्वारा । रणो= नहीं। रणातं = समझा हुआ । भवति होता है । अत्यि% है । मे= मेरी। पाया=पात्मा उववाइए= पुनर्जन्म लेने वाली। णस्थिनहीं है। के= कौन ? अहंमैं । प्रासी-था। - 1. कभी कभी पष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर होता है (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-134) चयनिका ] [ 79
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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