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शब्दों (तथा) रूपों में अनासक्त (थे) और ध्यान करते थे। (जव वे) असर्वन (थे), (तब) भी (उन्होंने) साहस के साथ
(संयम पालन) करते हुए एक बार भी प्रमाद नहीं किया। 129 आत्म-शुद्धि के द्वारा संयत प्रवृत्ति को स्वयं ही प्राप्त करके
भगवान् शान्त (और) सरल (बने)। (वे) जीवन-पर्यन्त समतायुक्त रहे।
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