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ग्रन्थकर्ताका परिचय।
ज्ञानसूर्योदय नाटक श्रीवादिचन्द्रसूरिने विक्रम संवत् १६४८ __ में मधूक (महुवा ? ) नगरमें रहकर बनाया है। वे मूलसंघके आ
चार्य थे, और उनके गुरुवर्यका नाम श्रीप्रभाचन्द्रसूरि था । पुस्तकके अन्तमे जो प्रशस्ति दी है, उससे यह वृत्तान्त विदित होता है । काव्यमालाके तेरहवें गुच्छक में एक पवनंदूत नोमका काव्य थोड़े दिन पहले प्रकाशित हुआ है। वह भी श्रीवादिचन्द्रसूरिका बनाया हुआ है, ऐसा उसके अन्तिम श्लोकसे विदित होता है । वह श्लोक यह है:पादौ नत्वा जगदुपवृतावर्धसामर्थ्यवन्तो
विघ्नध्वान्तप्रसरतरणेः शान्तिनाथस्य भत्त्या। । श्रोतुं चैतत्सदसि गुणिना वायुदूताभिधानम्
काव्यं चक्रे विगतवसनः स्वल्पधीर्वादिचन्द्रः॥१०॥ इसके सिवाय ईडरके भंडारमें एक सुभगसुलोचनचरित नामका काव्य भी इन्हींका बनाया हुआ है, परन्तु वह देखनेके लिये नहीं मिल सका । पांडवपुराण, पार्श्वपुराण, और होलीचरित्र नामके तीन ग्रन्थ भी श्रीवादिचन्द्रसूरिके बनाये हुए है, ऐसा डेक्कनकालेज वगैरहकी रिपोर्टोसे विदित होता है। प्रभाचन्द्रसूदि
१ यह काव्य कालिदासके मेघदूतके ढगपर बनाया गया है । इसमे सुप्रीवने सुताराके विरहसे पीडित होकर जो पवनरूपी दूतके द्वारा सन्देशा भेजा है, उसका वडा ही हृदयग्राही वर्णन है । जिस गुच्छकमें यह प्रकाशित हुआ है, उ. समें मनोदूत, विल्हणकाव्य, गंजीफा खेलन, धनदशतकत्रय, दूतीकर्मप्रकाश आदि और भी उत्तमोत्तम काव्य सगृहीत हैं। मूल्य १ रुपया है ।
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