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इस ग्रन्थमें जो विषय न्यायका है, उसका अनुवाद जैनसमाजके दो अच्छे विद्वानोंसे सशोधन करा लिया गया है। इसके सिवाय और भी जो संदेहजनक स्थान थे, वे विद्वानोंकी सम्मतिसे स्पष्ट करके लिखे गये हैं। इससे जहांतक
मैं समझता हूं, अन्यमें कोई भूल नहीं रही होगी। तो भी यदि श्रमवशोत् कुछ • 'दोष रह गये हों, तो उनके लिये मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
बम्बई. ज्येष्ठ कृष्णा २ ।
वीरनि०' २४३५' ।
नाथूराम प्रेमी.