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ज्ञानसूर्योदय नाटक । शान्ति–सो कैसे?
क्षमा-ये मल्लिनाथ तीर्थकरको कहते तो है स्त्री, और पू. जते है, पुरुषके आकारकी मूर्ति बनाकर । इसके सिवाय और भी अनेक बातें सिद्धान्तोंके विरुद्ध कहते है।
शान्ति-उनमेंसे थोड़ी बहुत मुझे भी सुना दे ।
क्षमा-एक तो यही कि, सम्पूर्ण शास्त्रोंमें जुगलियोको देव. गति कही है । परन्तु ये महात्मा मरुदेवी और नाभिराजा दोनोंको मोक्ष गये बतलाते है। __ शान्ति-तो क्या ये स्त्रियोंको भी मोक्ष मानते है? शास्त्रमें तो इस विषयमें कहा है कि,जदि दसणो हि सुद्धा सुत्तज्झयणेण चापि संजुत्ता । घोरं चारिदुचरियं इत्थिस्स ण णत्थि णिव्वट्टी ।
अर्थात् “ स्त्री शुद्ध सम्यग्दर्शनकी धारण करनेवाली हो, सू. त्रोंका अध्ययन भी करती हो, और घोर चारित्रका धारण भी करती हो, परन्तु उसके परिणामोंसे वह उत्कृष्ट निर्जरा नही हो सकती है, जो निर्वृत्ति अर्थात् मोक्षकी कारण होती है।"
क्षमा-(शान्तिको श्वेताम्बर यतिकी ओर हॅसते हुए देखती देखकर ) बेटी । देखती क्या है ? ये श्वेताम्बरी बौद्धोंके छोटे भाई है। इस भी बहुत विरुद्ध सैकड़ों नये २ सिद्धान्त कल्पित करके मार्गसे भ्रष्ट हो गये है। ' शान्ति-हे माता ' ये श्वेतपट (श्वेताम्बरी) भला किस समयमें उत्पन्न हुए है ?