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________________ ' सद् विचार से अन्तद्वन्द शांत हो जाता है। - निमित्त उपादान मीमांसा (श्री विद्या वाचस्पति पं वर्द्ध मान पा० शास्त्री सोलापुर) कुछ लोग निमित्त को कार्यकारी नहीं मानते है, उनकी दृष्टि में उपादान ही करण है। निमित्ति कार्य मे कारण नही बनता है । इस सम्बन्ध में जैनागम का क्या दृष्टिकोण हे ? और जैन आचार्यों का क्या मत है ? इसका विवेचन इस लेख में करने का हमने विचार किया है। सबसे पहिले उपादान और निमित्त कारणो को व्याख्या क्या है उसे समझने का प्रयत्न करे। उपादान कारण जो कारण कार्य रूप में परिणत होता है उसे उपादान कारण कहते है । कार्य रूप में परिणत होने के बाद कारण का काम कारण के रूप में खतम हो जाता है। वह कार्य रूप में बन जाता है। ___उदाहरण के लिए हम यहां पर लोक-प्रसिद्ध दृष्टान्त लेते है। मिट्टी का घड़ा बनाने के लिये मिट्टी की जरूरत है। मिट्टी घड़े का उपादान कारण है। मिट्टी घडे के रूप में परिणत हो जाती है। घड़ा बनने के बाद मिट्टी का कारणत्व क्या करेगा, वह घड़े के कार्य रूप में परिणत हुआ, अतः वह मिट्टी उपादान कारण कहलाती है । निमित्ति कारण उपादान में बलाधान करने के लिये जो सहकारी के रूप में कार्य करता है वह निमित्ति कारण है । इस घड़े के कार्य में कुम्हार, चक्र, दड, पानी आदि निमित्त कारण है, क्योकि इन कारणो ने उस उपादान में उपादानत्व जागृत होने के लिये बलाधान व्यक्त किया, अगर कुम्हार उस मिट्टी को उठाके नही लाता, उसमें पानी नही मिलाता, चाक में उसे नहीं रखता, दण्ड से उसे नही फिराता तो तीन काल में भी वह घड़ा नही बनता, अर्थात् उपादान रूपी मिट्टी पडो रहती तो भी घड़ा नही बनता, उसमें घड़ा बनने की योग्यता उस निमित्तिो के बिना नही हो पाती। . सो दोनों कारण अपनी-अपनी जगह महत्वपूर्ण है । 'किसी एक के बिना कार्य नहीं हो सकता है। , न्याय शास्त्रों में कहा गया है कि कार्य करने को शक्ति किसी एक कारण में नहीं है, अनेक समर्य कारणो के मिलने पर ही कार्य होता है । इसलिए केवल उपादान कारण ही कार्य करने के लिए समर्थ है यह कहना उपयुक्त नहीं है। इस विषय का स्पष्ट समर्थन आचार्य समत भद्र ने किया है बाहोतरो पाधि समग्रतेमं, कार्येषु ते द्रव्य गतः स्वभावः । नैवान्यथा मोक्ष विविश्च पुंसां, तेनाभिवंद्यस्त्वमषिव॒धानाम् ।। [२२]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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