SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुरुजनो को संगति पाप रूपी मन को दग्ध करती है। www (१) अनादि नित्य पर्यायाथिक नयः जैसे मेरु आदि पुद्गल को पर्याय नित्य है अर्थात् मेरु कुलाचल पर्वत अकृत्रिम जिनबिम्ब जिनालय आदि सब पुद्गल को पर्याय अनादि काल से है । और अनन्य काल तक रहेगी इनका कभी विनाश नही होगा इसलिये यह अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय का विषय है। (२) सादि नित्य पर्यायाथिक नयः जैसे सिद्ध ससार अवस्था को छोडकर सिद्ध हुये इसलिये सादि है, और कभी मोक्ष अवस्था को छोडकर फिर ससार मे लौट कर नही आवेगे इसलिये यह नित्य है और दोनो मिलाकर नित्य पर्यायाथिक नय का विषय है। (३) अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नयः धौव्य को गौण करके उत्पाद-व्यय को ग्रहण करने वाला नय अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय है जैसे प्रति समय मे पर्यायो का विनाश होता है ।। (४) नित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नयः घौव्य को अपेक्षा सहित द्रव्य को ग्रहण करने वाले नग को नित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय कहा है । जैसे द्रव्य एक समय मे उत्पाद व्यय प्रौव्यात्मक है। (५) नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नयः___कर्म-उपाधि निरपेक्ष द्रव्य को ग्रहण करने वाला नय नित्य शुद्ध पर्यायाथिक है। जैसे-अरिहन्त पर्याय सिद्ध समान है। (६) अनित्य अशुद्ध पर्यायाथिक नयः इस नय का विपय कर्म उपाधि सापेक्ष स्वभाव है। जैसे ससारी जीवो का नित्य जन्म मरण होता है। इस नय के विषय का नाम निश्चय नय है । क्योकि निश्चय नय शुद्ध और अशुद्ध के भेद से दो प्रकार का है । अशद्ध द्रव्याथिक मे अशुद्ध नय और शुद्ध द्रव्याथिक में शुद्ध निश्चय नय गर्भित होता है। व्यवहार नय "भेदोपचार तथा वस्तु व्यवह्रियत इति व्यवहार" भेद और उपचार के द्वारा जो वस्तु का व्यवहार होता है वह व्यवहारनय है। व्यवहारनय का दूसरा नाम उपनय है। अर्थात् जो नयो के समीप रहे उसको उपनय कहते है । उसके तीन भेद है-सद्भूत व्यवहारनय, असद्भुत व्यवहान्नय, उपचरित असद्भूत व्यवहारनय । सजा संख्या लक्षण की अपेक्षा गुण गुणी मे पर्याय पर्यायी में स्वभाव स्वभावी मे कारक कारकी में भेद करने वाला सद्भूत व्यवहारनय है, जैसे-उष्ण स्वभाव है-और अग्नि स्वभावी है-इसमें भेद करना सद्भूत व्यवहारनय का काम है। [१५]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy