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________________ पाप कार्य का फल विष वृक्ष के समाम जीव का घातक है। आचार्य शान्ति सागर का असाधारण व्यक्तित्व, तपश्चर्या और अपूर्व पुण्य के कारण उनके विहार में कोई कठिनाई नही आई। जन साधारण ने अपने को भाग्यशाली माना कि ऐसी अनुपम विभूति आध्यात्मिक सत शिरोमणि के दर्शन का उन्हे सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुनि पद ___ जब उत्सर का विहार विना विघ्न बाधा के होने लगा, तब सोनागिरि मे क्ष.ब्लक चन्द्र सागर जी को सन् १९२६ मे मुनि चन्द्र सागर जी को पदवी प्राप्त हुई। आचार्य श्री के समीप आकर अनेक व्यक्ति अद्भुत चर्चा छेडा करते थे, उस समय अनुभवी लोकविज्ञ तथा शास्त्राभ्यासी मुनि चन्द्र सायर महाराज उन सबका समाधान करते थे, जिससे उन्हें निरुत्तर हो जाना पड़ता था । आचार्य श्री को उचित अवसर पर थोडा बोलने का प्रसग आता था, उसमे श्रोताओ को अवर्णनीय आनन्द की अनुभूति होती थी। सघ का जब दिल्ली में १९३१ मे चातुर्मास हुआ था, उस समय रत्नत्रय धर्म को प्रभावना कार्य में मुनि चन्द्र सागर जी विशेष प्रयत्नशील थे। सघ जव राजस्थान आया, तब चन्द्र सागर जी आदि आचार्य सघ से अलग हो गए। ऐसा भवितव्य था, अन्य या अतिम जीवन तक चन्द्र सागर महाराज ने अपने मनो मन्दिर मे शाति सागर आचार्य महाराज के चरणारविन्दो की सदा पूजा की थी। अपूर्व प्रभावना राजस्थान में चन्द्र सागर महाराज के तपो पुनीत जीवन तथा उपदेश से धर्म की महान प्रभावना हुई । बहुत से दिगम्बर जैनो पर मिथ्या साधुओ का सम्पर्क रहने से विपरीत प्रभाव पड़ा करता था, यह मलिनता दूर हो गई और उन लोगो के हृदय में सच्ची श्रद्धा धर्म तथा सच्चे गुरुओ के प्रति भक्ति की भावना उत्पन्न हुई। हजारो लोगो ने शूद्र जल सम्बन्धी प्रतिना लेकर सत्पात्र दान का सौभाग्य प्राप्त किया। लोग सम्यक्चारित्र की ओर अधिक उन्मुख हुए। रत्नत्रय धर्म द्वारा सच्ची प्रभावना हुई। वाणी __ पवित्र हृदय होते हुए भी चन्द्र सागर महाराज की वाणी से कभी-कभी कडे शब्द निकलने से कोई व्यक्ति रुष्ट हो जाते थे। कुछ लोगो ने विरोध में आन्दोलन भी किए, किन्तु सच्ची तपस्या और विशुद्ध श्रद्धा युक्त व्यक्तित्व होने के कारण चन्द्र सागर महाराज के कार्यों में बाधा नही आई, यदि कठिनाई आई भी तो वह थोड़े समय तक टिकी। हमें हजारो समृद्ध सम्पन्न जैन मिले जो यह कहते है कि हम लोगों का सच्चा उद्धार चन्द्र सागर जी महाराज के द्वारा हुआ। उदाहरण एक वर्ष हो गगा, जब अनंतमती आविका माता जी (कन्नड वाली) सिवनी में
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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