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________________ अन्य भाय पाले पापो को विद्या पूरता को यतली का। जिससे इस छोटी मी उम्र में आपके दर्शन किये । आपके दांनी म न नही भल सकती। मैं तो ऐसा मानती है कि उन्हीं के नस्कार ने आउला उत्कृष्ट धर्म प्रचारक गुरुओ की गौरव गाथा गाई नही जा सकती। आपके वननो में माता को माला हृदय में विविक्षा, मन मे मृदुता, भावना मे भव्यना, नयन में परीक्षा, बन्दि में नमोना निमें विशालना, व्यवहार में कुशलता और अन्त.करण मे कोमलता कूट कूट कर भरी भो। म लिये आपने मानव को पहिचाना-पात्र की परीक्षा कर व्रत दिये। जन जन के हटग में गागको सुवास भरी। वर्तमान चन्द्र अन्धकार को दूर करता है, परन्तु चन्द्र सागर पो नन निमन नन्न । उनको ज्ञान ज्योत्सना निर्मल थी । जो ज्ञानियों के मन-मन्दिर में ज्ञान का प्रकाश लिनी । जिन्होने धर्मोपदेश देकर जन-जन का एजान दूर किया। देश-देशान्तरों में बिहार कान्नि धर्म का प्रचार किया। उनका वह परम उपकार कल्पात काल तक स्थिर रहेगा। उनी ननो में ओज था। उपदेश की गैली अर्व थी। उनके मघर भापणों में उनके जैन मितान ने रमन पूर्व मर्मज्ञ होने की प्रखर प्रतिभा का परिचय स्वत. मिलता था। उनकी गमाम्नगर्भा गगन वाक्य रश्मियों से साक्षात शाति-सुधा, रम विकोणं होता था। जिसे पान कर भक जनम उठते और अपूर्व शाति का लाभ लेते थे। अपूर्व मनोबल उनकी वृत्ति सिंह वत्ति थी। अतएव उनके अनुशासन नया नियंत्रण में माता का ना न था। मच्चे पिता की मी परम हितैषिणी कट्टग्ना थी । जिनके लिए उन्होंने अपने जीवनागजिन यश की बलि चढाने मे जरा भी परवाह न को। अनेक देशो में विहार करते हये विक्रम नंबन २००१ फाल्गुन नदी ८ मागमान गगनगजा मे आये। उस समय आपके इस भौतिक शरीर को ज्वर के वेग ने पर लिया था। इन लिए उनका शरीर यद्यपि दुर्वल हो गया था। फिर भी मानसिक वन अपूर्व जामियानी गिद क्षेत्र में चांदमल धन्नालाल की ओर से मानस्तम्भ प्रतिष्ठा थी। मरने गण ग्वामी अपने हाथ से प्रतिष्ठा कराई। पूज्य गुरुदेव की शारीरिक स्थिति अधिकाधिक निवंग ही होती गई। तो भी गदागद श्री ने फाल्गुन मुदी १२ को फरमाया कि मुझे चूलगिरि के दगंन सगा। लोगों ने कहा- "महाराज-गरीर स्वम्य होने पर हार पर जाना गित गा। गुरुदेव ने कहा कि शरीर का भरोसा नहीं। यदि शरीर ही नही ग्हा नो हमारा
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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