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सम्पक ज्ञान अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य के समान है।
नोकषाय ३ मन वचन योग ८ औदारिक १ सर्व १६ है। १० वें गुरण स्थान में-सं० लोभ १ मन वचन ८ औदारिक १ ये सर्व १० होते है। दश सूक्ष्मेऽपि च द्वयोः नव सप्त सयोगे प्रत्यया भवन्ति । प्रत्ययहीनमन्यूनं अचोगिस्थानं सदा वन्दे ॥७॥
भावार्थ-ग्यारहवें-बारहवें दो गुण स्थानों में-मन वचन योग ८ औदारिक १ ये सर्व ६ आश्रव है। १३ संयोगि में सत्य अनभयमन २ वचन २ औदारिक मिश्र २ कार्म १ ये सर्व ७ होते है । अयोगी १४ वे गुण स्थान में सर्व अभाव है। ऐसे परमात्मा को सतत हम वन्दते है।
॥ इति गुण स्थानम आश्रवः ॥ प्रवचनप्रमाणलक्षणच्छन्दोऽलङ्कार रहित हृदयेन । जिनचन्द्रेण प्रोक्तं इदं आगमभक्तियुक्तेन ॥७॥ भावार्थ-यह सिद्धांतसार शास्त्रं-जिनचन्द्र-सिद्धान्त ग्रन्थ वेदिने-प्रवचन-प्रमान लक्षणच्छन्द अलंकारादि छोड़ हृदय से आगम की भक्ति से इसे युक्ति से लिखा है। सिद्धान्तसारं वरसूत्रगेहाः, शोधयन्तु साधवो मदमोहत्यक्ता ॥ पूरयन्तु हीनं जिननाथभक्ताः विरागचित्ताः शिवमार्गयुक्ताः ॥७॥
भावार्थ-भो साधुगण इस ग्रन्थ की अशुद्धियादि को शुद्धि कर लेवो या भूल रही हो सो पूर्ति कर लेवो मैने जिनागम की भक्ति से मद मोह छोड़ कर विराग भाव से सम्यग्दर्शनादि मोक्ष मार्ग की अभिलाषा से यह लिखा है ।
॥ इति सिद्धान्तसार पूर्ण ॥
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