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________________ सम्यग्दर्शन पाप वृक्ष को काटने के लिये कुठार है। भावार्थ-अभव्य जीव में-कुमति-कुश्रुति-कुअवधि-चक्षु-अचक्षु दर्शन ये पाँच अशुभ उपयोग होते है । इति भव्य मार्गणा ॥ क्षायिक सम्यक्त्व में तीन कुज्ञान छोड़ नव है, वेदक सम्यक् में-कुज्ञान तीन-केवलज्ञान-दर्शन दोन मिल पांच खेरीज सात उपयोग है, उपशम सम्यक्त्व में-सुमति आदि तीन ज्ञान-चक्षु आदि तीन दर्शन ये छह उपयोग है। मिश्र सम्यक्त्व में-मिश्र आदि के तीन ज्ञान कुसुमिश्र-चक्षु-अचक्षु-अवधि दर्शन तीन ये सर्व छह होते हैं। सासादन सम्यक्त्व में कुज्ञान तीन-चक्षु-अचक्ष दर्शन दो सब पांच उपयोग हैं। मिथ्यात्व सम्यक्त्व में सासादनऽनुसार पांच होते है। इति सम्यक्त्व मार्गणा ॥ दश संज्ञिनि असंजिनि चत्वारः प्रथमे आहारके च द्वादशकं । मनश्चक्षुर्विभंगोना नव अनाहारे च उपयोगाः ॥४२॥ __ भावार्थ-संज्ञी जीव में-केवल ज्ञान दर्शन दो छोड़ शेष दस उपयोग होते है, असंज्ञि जोव में-कुर्मात-कुश्रुति-दोन ज्ञान-चक्षु-अचक्षु दर्शन दो ये चार होते है । इति संज्ञिमार्गणा ॥ अहारक जीव के बारह उपयोग होते है, अनाहरक जीव में-मनपर्यय ज्ञान-चक्षु-दर्शन-विभग ज्ञान ये तोन छोड नउ उपयोग होते है । इति आहार मार्गणा ॥ ॥ इति चतुर्दश मार्गणासु द्वादशः उपयोगः पूर्णः ।। अथ-चौदह जीव समास में पंद्रहायोग वर्णन.नवसु चतुष्के एकस्मिन् योगा एको द्वौ भवन्ति द्वादश । तद्भवगतिषु एते भवान्तर्गतिषु कार्मणं ॥४३॥ सप्तसु पूर्णेषु भवेत् औदारिकं मिश्रकं अपूर्णेषु । एकैकयोगः द्वि हीनाः जीव समासेषु ते ज्ञेयाः॥४४॥ भावार्थ-एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त में-एक औदारिक मिश्र काय योग-एके-सूक्ष्म पर्याप्त में औदारिक काय योग एक-एके-बादर अपर्याप्त में औदारिक मिश्र १-एक वादर पर्याप्त में औदारिक काय १. द्वि इन्द्रिय अपर्याप्त में-औ०मिश्र १ द्विइन्द्रिय पर्याप्त में औदारिक काय १ अनुभय वचन १ ये दो हैं। बिइन्द्रि अपर्याप्त में-औ० मिश्र १-त्रिइन्द्रिपर्याप्त में औदारिकाय १ अनुभय वचन १ ऐसे दोन। चौइन्द्रि 59 [२३३]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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