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संयमरूपी निधि को नाश करने वाले विषय भोग शत्रु हैं ।
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वर्तमान काल के तीर्थंकरों के नाम, वंश, चिन्ह तथा वर्ण का कथन अनु० नाम वंश चिन्ह वर्ण अनु० नाम वंश चिन्ह वर्ण १. आदिनाथ इक्ष्वा बैल सुवर्ण १३. विमलनाथ इक्ष वराह सुवर्ण २. अजितनाथ इक्ष्वा हाथी सुवर्ण १४. अनंतनाथ इक्ष सेहरा सुवर्ण ३. शंभवनाथ इक्षु घोड़ा सुवर्ण १५. धर्मनाथ इक्ष वज्र सुवर्ण ४. अभिनंदन इक्ष वानर सुवर्ण १६. शांतिनाथ कौरव्य हिरण सुवर्ण ५. सुमितिनाथ इक्षु चकवा सुवर्ण १७. कुंथुनाथ कौरव्य बकरा सुवर्ण ६. पद्मप्रभ इक्षु अष्टपांखुडी लाल १८. अरनाथ कौरव्य मांछला सुवर्ण ७. सुपार्श्वनाथ इक्ष साथिया हरित १६. मल्लिनाथ इक्ष कलश सुवर्ण ८. चंद्रप्रभ इक्ष चंद्रमा सफेद २०. मुनिसुव्रतनाथ यादव कछवा श्याम ६. पुष्पदंत इक्षु मगर सफेद २१. नमिनाथ इक्षु शतपत्र सुवर्ण १०. शीतलनाथ इक्ष श्रीवक्ष सवर्ण २२. नेमिनाथ यादव शंख श्याम ११. श्रेयांशनाथ इक्षु गेडा सवर्ण २३. पार्श्वनाथ उर्ग सर्प हरित १२. बासपुज्य इक्षु भैसा लाल २४. महावीरस्वामी नाथ सिंह सुवर्ण
एकादशांगुलं बिबं सर्वकामार्थसाधकं ॥
एतत् प्रमाणमाख्यातं यत उद्धं न कारयेत् ॥११॥ अर्थ-गृहस्थी अपने गृह चैत्यालय में ११ अंगुल से अधिक जिन बिब न करावं उणे नाप से बणावै ॥ ११॥ उक्तंच।
भालनाशाहनुग्रोवाहृन्नाभीगुह्यमूरुके ।।
जानुजंघांनिचैत्येकाद शांक स्थानकानितु ॥१२॥ अर्थ-भाल १ नाशा २ हनु ३ ग्रीवा ४ हृत् ५ नाभि ६ नयन ७ गुह्यांग ८ अरु ___ जानु १० जंघा ११ चरण १२ कर्ण १३ हस्त १४ ॥ १२ ।।
उर्ध्वा घोर युतं सबिंदु सपरं ब्रह्मा स्वरावेष्टितं । घर्गापूरित दिग्ग ताम्बूज दलं तत्संधि तत्त्वान्वितम् ॥ अन्तः पत्र तटेष्व नाहत युतं ह्रींकार संवेष्टितं । देवं ध्यायति यत्समुत्ति सवगौ वरीभ कंण्ठीरव ॥
अनाहत स्वरूप
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