SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृष्णा के वशीभूत होकर संकल्प विकल्प के आधीन मत बनो। बाहुयुग्मांतरुद्देशे भासयेच्चतुरंगुलं ।। प्रकोष्टात् कूपरयावद्वयं गुलं वर्द्धयेत्सदा ॥७३।। अर्थ- दोनों हाथों की अंजुली के ओर पेडू के अन्तर ४ भाग का रखे पौंछा से कोहनी पर्यन्त यथा शोभित हानि रूपी अन्तर रखे कोहनी के पास २ भाग का उदर से अन्तर रखे ॥७३॥ प्रातिहार्याष्टकोपेतं संपूर्णावयवशुभं ॥ ___ भावरूपानुविद्धांगंकारयेद् बिबमर्हतः ॥७४॥ अर्थ--ऐसे कायोत्सर्ग तथा पद्मासन रूप प्रतिमा अरहंत की अष्ट प्रातिहार्ययुक्त संपूर्ण अवयवनि करिपूर्ण शुभभावनि करियुक्त कर ॥७४॥ प्रातिहाविना शुद्ध सिद्ध बिबमपीदृशं ॥ सूरीणां पाठकानां च साधूनां च यथागमं ॥७५॥ अर्थ-पूर्वोक्त लक्षण संयुक्त प्रातिहार्य रहित होय सो सिद्ध प्रतिमा है आचार्य उपाध्याय साधू की भी प्रतिमा आगम प्रमाग सुन्दर कर ॥७॥ ___यक्ष की प्रतिमा कथन यक्षाणां देवतानांच सालंकार भूषितं । सुवाहनायुधोपेतं कुर्यात्सर्वाग सुन्दर ॥७॥ अर्थ-ऐसे ही यक्ष देवता आदि को भी संपूर्ण अलंकार करिभूषितसवारी शस्त्रायुधादिकरि संयुक्त सर्वाग सुन्दर प्रतिमा बनावै ॥७॥ प्रतिमा जी के शुभाशुभ कयन लक्षणोरपि संयुक्त बिबंदृष्टिविजितं । नशोभते यतस्तस्मा स्कुर्यादृष्टि प्रकाशनं ॥७७॥ अर्थ-संपूर्ण लक्षणों करि संयुक्त जिन बिबदृष्टि करके रहित नहीं शोभा पावै तात दृष्टि को प्रकाशन करै ।।७७॥ नात्यंतोन्मीलितास्तब्धा न विस्फारितमीलिता ॥ तिर्यगूर्धमधो दृष्टि वर्जयित्वा प्रयत्नतः ॥७॥ अर्थ--न तो अत्यन्त उघडी कर न मोंची करे अर्धोन्मीलित शान्ति रूप दृष्टि कर तिरछी ऊंची नीची न करै ॥७॥ [१६३]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy