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________________ परिग्रह को डोरी से मानव वधता है। अर्थः-और टिकूण्यां के पास ५ भाग १ भाग का त्रिभाग घाटि ५ भाग रखे इनकी गुलाई विस्तार से त्रिगुरणी करै ॥६०॥ अंगुलं गुल्फविस्तारः सत्यंगुलः परिधिर्भवेत् ॥ पादौ चतुर्दशायामौ गूढगुल्फो सुलक्षणौ ॥६१॥ अर्थ-दोउ टिकूण्यां एक भाग रख इनकी गुलाई विस्तार में त्रिगुणी करै घरणपण थली ऐडी से गूठा तक १४ भाग लंबी शुभ लक्षण सहित करै ।।६१॥. गुल्फादंगुष्टकानंच विज्ञेयं द्वादशांगुलं ॥ गुल्फयो पश्चिमे भागे चंगुला पाक्षिका भवेत् ॥६२।। अर्थ-टिकूण्यां से अंगुष्ठका अग्नपर्यन्त १२ भाग रख टिकूण्यां के पीछे एडी २ भाग रखै इनकी गुलाई विस्तार से त्रिगुणी करै ॥६२॥ तलं निम्नोन्नतं तस्या द्वयं गुलं विस्तृतमतं ॥ कार्य समांसलं तस्य परिणाहः षडंगुलः ॥६३॥ अर्थ-एडी नीचे से २ भाग बल में किंचित न्यून मध्य में ऊंचो गोल रख तिसको गुलाई छै भाग रखे ॥३॥ अंगुष्टस्त्यं गुलायामस्तावतीच प्रदेशिनी ।। षोडशाष्टाष्ट भागेनशेषा होनास्त्वनुक्रमात् ॥६॥ अर्थ-अंगुष्ट और प्रदेशिनी ३ भाग लंबी करै प्रदेशिनी से मध्यमा १ भाग का सौ भाग लंबा छोटो कर मध्यमा से अनामिका १ भाग का आठवां भाग छोटी रखे अनामिका से कनिष्टका भी १ भाग का आठवां भाग छोटो रखे ॥६॥ अंगुल द्वितयं मध्ये विस्तारोंगुष्ठकस्य च ॥ मूलेग्रेन्यूनकः किंचिच्छेषांगुल्योंगुलः प्रभाः ॥६५॥ अर्थ-अंगुष्ट मध्य में २ भाग चौडा रख मूल में तथा मध्य में किंचित् न्यून कर बाकी च्यारूं ही अंगुली १ भाग चौडी रखे ॥६५॥ सर्वासांत्रिगुणो नाहो यथाशोभं निरूपयेत् ॥ पर्वद्वितयमंगुष्टे शेषांगुल्यस्त्रि पविका ॥६६॥ अंगुलं नखमंगुष्टे शेषाणां तद्दल प्रभं ॥ किंचित्ल्यूनं कनिष्टां तमुत्तरोत्तरमीरितं ॥६७॥ [१६१]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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