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________________ भोगों का रोग असाध्य है, उसकी दवा संयम है। wwwwww पंचागुलं विभागोनं प्रवाहो मध्य विस्तरः । परिणाहो भवेतस्य त्वंगुलानि चतुर्दश ॥३४॥ अर्थ:-कोहनी के नीचे भुजा का मध्य १ भाग का त्रिभाग घाटि ५ भाग रखे । परिधि १४ भाग रखे ॥३४॥ मणि बंधस्य विस्तारो विज्ञेयश्चतुरंगुलः। परिणाहः पुनस्तस्य कौतितो द्वादशांगुलः ॥३५॥ अर्थ-पौंछा का विस्तार ४ भाग रखे । परिधि १२ भाग रखे ॥३॥ अगुली कथन तस्य मध्यांगुला प्रस्य चॉतरं द्वादशांगुलं । अंगुली मध्य माहस्ते ज्ञेया पंचांगुलायता ॥३६॥ अर्थ-पौछा से मध्य अंगुली का अग्न भाग तक १२ भाग रखे । हाथ के मध्य को अंगुली ५ भाग रखे ॥३६॥ अनामिकापि तत्रैव हीना मध्या पर्वणा। अनामिका समाकार्या स्वाया मेन प्रदेशिनी ॥३७॥ अर्थ-अनामिका अर तर्जुनी वोऊ अंगुली मध्यमा से अर्ध पर्व घाटि रखे ॥३७॥ कनीयस्यापि विज्ञेया पर्व होनात्व नामिका । मणि बंधात्कनिष्टाया मूलं पंचागुलं भवेत ॥३८॥ अर्थ-कनिष्टिका अनामिका से १ पोरवा घाटि रखे । पौछा से कनिष्टिका के मूल के पांच भाग अन्तर रखे ॥३८॥ तर्जुनी मध्यमा नाम मानतोऽर्धागुलामता। कनिष्ठिका विशेषोन त्रिगुणा परिणाहतः ॥३६॥ अर्थ-तर्जनी तथा मध्यमा का प्रमाण से कनिष्टा मुटाई में अर्ध भाग घाटि रखे। __चौड़ाई में त्रिगुरणी करै ॥३६॥ आयामतो विनिर्दिष्टा बंगुष्टौ चतुरंगुलौ । विस्तारेण समाख्यातौ सधिकं चैक मंगुलं ॥४०॥ अर्थ-अंगुष्ट ४ भाग लम्बा रखै विस्तार १ भाग से कुछ अधिक रखै ॥४०॥ अंगुष्ट को द्वि पर्वः स्याद्वेष्ट तं चतुरंगुलं । समांसलाः प्रकर्तव्या शेषां गुल्य स्त्रिपविकाः ॥४१॥ [१५७]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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