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________________ दुर्जन सन्जन से द्वेष करता है। wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm अर्थः-हृदय से १२ भाग प्रमाण नाभी रखै । नाभी से लिंग का मूल गुदा पर्यंत १२भाग पडू रक्खे,लिंगका मूल से गोडा तक जंघा २४भाग काअंतर रखे ॥१०॥ वेदांगुलं भवे जानु । जानु गुल्फां तरं करः ॥ वेदांगुलं समाख्यातं । गुल्फ पाद तलां तरं ॥११॥ अर्थ.-४ भाग प्रमाण गोडा रखे, गोडा से टिकूण्यां तक २४ भाग का अन्तर रखे । टिकूण्यां से पाद तल पर्यत ४ भाग का रखे । ऐसे ६ स्थान १०८ भाग प्रमाण करै ॥११॥ द्वादशांगुल विस्तीर्ण । मायतं द्वादशां गुलं ॥ मुखं कुर्यात्स्व के शांतं । त्रिधातच्च यथा क्रमम् ॥१२॥ अर्थः-डाढी से मस्तक के केश पर्यन्त १२ भाग ऊंचा १२ भाग ही चौडा मुख कर, ऊंचाई के यथा क्रम से ३ विभाग करै ॥१२॥ वेदॉगुलायतं कुर्या । ल्लालटं नासिका मुखं । घोरणारंध्र यवाण्टार्द्ध । घोणा पाली चतुर्यवा ॥१३॥ अर्थः-उन १२ भागों में चार भाग प्रमाण ललाट रख ४ भाग नासिका कर । नासिका से ठोडी तक ४ भाग करै । नासिका का रंध्र ४ यव अर्थात आधा भाग करें। इसी प्रकार नाशिका पाली अर्थात रंधा का ऊपरला भाग भी ४ यव प्रमाण कर ॥१३॥ ललाट का कथन किंचि लिम्नोन्नतं कुर्या । दिन कोटिं च नाम येत् ॥ तिर्यग ष्टांगुलायाम । भाल मद्धेदु सन्निभम् ॥१४ । अर्थः-ललाट ४ भाग ऊँचा ८ भाग चौड़ा अर्ध चन्द्राकार बणावै । वह ललाट किंचित निचा व ऊँचा दीखता हुवा कर और ललाट की अग्न कोटि नमन अर्थात नैती हुई रखे ॥१४॥ केश का कथन केश स्थानं जिनेन्द्रस्य । प्रोक्तं पंचांगुलायतं ॥ उल्मीषं च ततो शेव । मंगुल द्वय मुन्नतम् ॥१५॥ अर्थः-ललाट के ऊपर केश स्थान ५ भाग रखै उत्पीष भी ५ भाग रखे । तिस ऊपर चोटी २ भाग क्रम रूप चूडा उतार रखे। ऐसे ललाट से चोटो तक १२ भाग [१५३]
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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