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________________ अशुद्ध प्रवृत्तियो के रहते फल्याणमयो प्रवृत्ति नहीं हो सकती है । mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwram तपस्वी, आगमनिष्ठ, सच्चा महाव्रती, दृढ आत्म सयमी महा मुनिराज श्री नद्रगागर जी महाराज का नाम मुकुटिमणि के रूप मे शोभायमान होता है। 'बाप से बेटा मवाई इस लोलोनि के अनुसार अपने आदर्श महान तपस्वी गुरु आचार्य शातिसागर जी मे भी अधिक महामुनि श्री चंद्रसागर जी ने अपनेको आदर्श सवाई शिष्य के रूप में सिद्ध किया। वस्तुत बाप या गुरु के जीवन की सार्थकता भी इसी में है कि उसका पुत्र या गिण्य आदर्श परम्परा का निर्वाह करता हुआ ससार में अपने बाप या गुरु से भी अधिक गौरवता को प्राप्त करे । 'वह सच्चा वीर साधु है' ___ आचार्य शाति सागर जी अपने इस महान चारित्र निष्ठ, निष्कलक, आगमज विद्वान नि संग, निर्भय एव वीतराग असाधारण तप.पूत शिष्य को पाकर अपने मे महान गौरव अनुभव करते थे। वे हमेशा उनकी सराहना किया करते थे । सन१९४५की बात है आचार्य शातिमागरजी अपने संघ के साथ गुजरात से विहार करते हुये महाराष्ट्र प्रदेश में नासिक जिले के पास एक रोज वराना नामक ग्राम में नदी के किनारे बैठे हुए थे। पूज्य श्री १०८ मुनिराज वीरमागर जी (वाद में आचार्य) भी अपने सघ के साथ गुरु के पास बैठे हुए थे । तब मुनिराज वीर मागर जी, मुनि चन्द्रसागर जी आदि प्राय. सभी शिष्य अलग २ विहार करते थे। उस समय अन्य भी कुछ श्रावक गण बैठे हुए थे । मैं भी था। मैंने उस समय प्राचार्य महाराज के पास इन्दौर में हुए मुनि चन्द्रसागर जी के बहिष्कार की चर्चा छेडी तो उसी समय आचार्य महाराज ने कहा कि - 'चन्द्रसागर हमारा सच्चा वीर शिप्य है । वह उसकी ही हिम्मत थी कि इन्दोर जैसे स्थान में वहिष्कार किये जाने पर भी वह अत्यन्त निश्चल और निर्भय रहा। आगम मार्ग पर दृढ रहा।' इन शब्दो में आचार्य महाराज ने अपने शिष्य मुनि चन्द्रसागर जी का गौरव किया। यह सुनकर सब बोग हर्षित होकर चन्द्रसागर महाराज की 'जय' बोलने लगे। 'चंद्रसागर का बहिष्कार अन्याय और अनुचित है। इन्दौर में जब पूज्य महामुनि चन्द्रसागर जी महाराज ने इन्दौर के माध भक्त धार्मिक लोगो की प्रार्थना से ससघ चातुर्मास करने का निश्चय किया तो यह बात वहां के कुछ पथ द्वेपी पडितों को सहन नहीं हुई और उन्होंने इन्दौर के कुछ श्रीमतो को धी चद्रमागर जी महाराज के विरोध में पथ द्वेष को झूठी वात कहकर भडकाना शुरू किया । श्रीमतो ने भी आगे पीछे का योग्य विचार न कर पंथ ड्वा के भय से महाव्रती चद्रसागर जी का बहिष्कार करा दिया। उम रित वहिष्कार की केवल इन्दौर की वार्मिक गुरु भक्त ममाज में ही नही मागे वर्ष की समाज मे तीव्र प्रतिक्रिया हुई। समाज ने इस अन्याय पूर्ण बहिष्कार का नीत्र ही नहीं किया स्वयं इन्दौर में ही अप्रत्याशित रूप से आगमानुसार पद्धति का एक व्य जिन मदिर खड़ा कर वहिष्कार को अप्रभावित करा दिया । श्री चद्रमागरजी महाने ऐसे बहिष्कार के झंझावाती वातावरण में एक स्थित प्रन योगी की नन्ह अन्यन्न शान्न
SR No.010765
Book TitleChandrasagar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuparshvamati Mataji, Jinendra Prakash Jain
PublisherMishrimal Bakliwal
Publication Year
Total Pages381
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size13 MB
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