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________________ [२०] • प्रजाके आगेवान् पंचलोग लोगोंको लाखों करोडों रुपयोंका लेने देनेका आदेश (हुक्म) करते हैं मगर मालिक नहीं हो सकते. तैसेही धर्म व्यवहारमें भी भगवान् की भक्ति के लिये पूजा, आरती, स्वप्न, पालना वगैरह कार्योंके चढावेका आदेश देनेमें संघतो विश्वासपात्र टूस्टीपनेमें स्वयंसेवक मंडलरूप होने से आदेश दे सकता है, उस द्रव्यको उघाई कर सकता. है, भगवान् की भाक्तिमें उस द्रव्यका उपयोग कर सकता है और उस द्रव्यकी रक्षा सार संभालभी कर सकता है मगर आदेश देनेसे मालिक नहीं हो सकता तथा भगवान् की भक्ति के सिवाय अन्य किसी जगह अपनी भरजी भुजब उस द्रव्यका उपयोगभी किसी तरह से नहीं कर सकता. तिसपर भी अज्ञानवश या किसी के भ्रमाने से उस देवद्रव्यकों आदेश देनेके बहाने साधारणखातेका समझकर संघ किसीभी अन्य कार्य में उपयोग करे तो वो विश्वासपात्र टूस्टीपने में स्वयंसेवक मंडलरूप देव द्रव्यका रक्षक नहीं कहा जावेगा किंतु विश्वासघात से देव द्रव्यका नाश करनेवाला ही कहा जावेगा. और देवद्रव्यके नाश करने वालेको शास्त्रकार महाराजों ने अनंत संसारी कहा है. इसलिये बिचारे भालें. भक्तोंकों भगवान् की भक्ति व देवद्रव्य की. रक्षा करने से मोक्षगामी बनाने के बदले देवद्रव्यके नाश करनेवाले अनंत संसारी बनानेका उपदेश देनेवाले संघ के हितकर्ता नहीं किंतु अहित (द्रोह) करनेवाले समझने चाहिये. .. ३६ : औरभी देखो विचार करो जैन शासन की उन्नति के लिये देव गुरु धर्म की भक्ति के लिये व अपने आत्म कल्याण के लिये संघ किसीको मंदिर बनानेका, प्रतिमा बैठानेका, प्रतिमाजीके आभूषणादिक बनाने का और किसीको साधु होनेका या साधुको वस्त्रं, पात्र, कंबल, रजोहरण (ओघा.) तथा आहारादि वहोराने का आदेश: (हुक्म.) देता है. उनसे भक्तिके और उन कार्योंकी अनुमोदनाके लाभका भागी होता हैं. मगर उन्हीं कार्योंका ( वस्तुओंका ) मालिक कभी नहीं हो सकता..
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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