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परिशिष्ठ (६)
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ते जिज्ञासु जीवने ते ते भोग्य विशेषनां तेथी एम जणाय छे त्याग विराग न चित्तमा दया शांति समता क्षमा दर्शन षटे शमाय छे दशा न एवी ज्यां सुधी देवादि गति भंगमां देह छतां जेनी दशा देह न जाणे तेहने देह मात्र संयोग छे देहादि संयोगनो नयी दृष्टिमा आवतो नय निश्चय एकांतथी नहीं कषाय उपशांतता निश्चयवाणी सांभळी निश्श्रय सर्वेशानीनो परमबुद्धि कृष देहमां पांचे उचरथी थयु पांचे उत्तरनी थई प्रत्यक्ष सद्गुरुप्रासिनो प्रत्यक्ष सदुख्योगथी प्रत्यक्ष सद्गुरुयोगमा प्रत्यक्ष सद्गुरु सम नहीं फळदावा-श्वर गण्ये फळदाता ईश्वरतणी बाझ क्रियामां राचतां बाह्य त्याग पण शान नहीं बीजी शंका थाय त्यां बंध मोक्ष छे कल्पना भावकर्म निजकल्पना भास्यो देहाभ्यासथी भास्यो देहाभ्यासथी भास्यं निजस्वरूप ते मत दर्शन आग्रह तजी
१०९ | माटे छे नहीं आतमा
माटे मोक्ष उपायनो |मानादिक शत्रु महा
मुखथी शान कये अने १३० मोहभाव क्षय होय ज्यां १२८ | मोक्ष कहो निजशुद्धता
रागद्वेष अज्ञान ए २७ रोके जीव स्वच्छंद तो १४२ लघु स्वरूप न वृत्तिनुं
| लक्षण कलां मतार्थीना ६२ | वर्तमान आ काळमां
| वर्ते निजस्वभावनो
| वर्धमान समकित थई १३२ | वळी जो आतमा होय तो
३२ वात्यो काळ अनंत ते १३१ वैराग्यादि सफळ तो ११८ | शुद्ध बुद्ध चैतन्यधन
| शुभ करे फळ भोगवे | शं प्रभु चरण कने घर षट्पदना षट्प्रभ तें षट्स्थानक समजावीने | षट्स्थानक संक्षेपमा | सकळ जगत् ते एठवत् | सद्गुरुना उपदेश वण सर्व अवस्थाने विषे सद्गुरुना उपदेशथी सर्व जीव के सिद्धसम सेवे सद्गुरु चरणने | स्थानक पांच विचारीने
| स्वच्छंद मत आग्रह तजी ८२ होय कदापि मोक्षपद
होय न चेतन प्रेरणा
होय मतार्थी तेहने १२० | होय सुमुक्षु जीव ते ११. | शानदशा पाम्यो नहीं
८८ १२५ १०६ १२७
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