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________________ 'काल किसीको नहीं छोड़ता' नक्सीवाली पोंची धारण करते थे, वे भी मुद्रा आदि सब कुछ छोड़कर मुँह धोकर चल दिये, हे मनुष्यो; जानो और मनमें समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता ॥ ३ ॥ जो बांकीकर अलबेला बनकर मूंछोंपर नींबू रखते थे, जिनके कटे हुए सुन्दर केश हर किसांके मनको हरते थे, वे भी संकटमें पड़कर सबको छोड़कर चले गये, हे मनुष्यो, जानो और मनमें समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता ॥४॥ जो अपने प्रतापसे छहों खंडका अधिराज बना हुआ था, और ब्रह्माण्डमें बलवान होकर बड़ा भारी राजा कहलाता था, ऐसा चतुर चक्रवर्ती भी यहाँसे इस तरह गया कि मानों उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था, हे मनुष्यो, जानो और मनमें समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता ॥ ५॥ __जो राजनीतिनिपुणतामें न्यायवाले थे, जिनके उलटे डाले हुए पासे भी सदा सीधे ही पड़ते थे, ऐसे भाग्यशाली पुरुष भी सब खटपटें छोड़कर भाग गये । हे मनुष्यो, जानो और मनमें समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता ॥ ६ ॥ जो तलवार चलानेमें बहादुर थे, अपनी टेकपर मरनेवाले थे, सब प्रकारसे परिपूर्ण थे, जो हाथसे हाथीको मारकर केसरीके समान दिखाई देते थे, ऐसे सुभटवीर भी अंतमें रोते ही रह गये। हे मनुष्यो, जानो और मनमें समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता ॥ ७ ॥ ए वेढ वींटी सर्व छोडी चालिया मुख धोईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने ॥ ३ ॥ मुछ वाकडी करी फांकडा थई लींबु धरता ते परे, कापेल राखी कातरा हरकोईनां हैया हरे; ए सांकडीमां आविया छटक्या तजी सहु सोईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने ॥ ४ ॥ छो खंडना अधिराज जे चंडे करीने नीपज्या, ब्रह्मांडमां बळवान थइने भूप भारे ऊपज्या; ए चतुर चक्री चालिया होता नहोता होईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने ॥ ५॥ जे राजनीतिनिपुणतामां न्यायवेता नीवव्या, अवळा कयें जेना बधा सवळा सदा पासा पल्या; ए भाग्यशाळी भागिया ते खटपटो सौ खोईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने ॥ ६ ॥ तरवार व्हादुर टेक धारी पूर्णतामा पेखिया, हायी हणे हाये करी ए केसरी सम देखिया एवा भला भडवीर ते अंते रहेला गईने, जन जाणीए मन मानीए नव काळ मूके कोईने ॥७॥
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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