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________________ ८२८ श्रीमद् राजचन्द्र कवितामें बोधज्ञान अधिक पाया जाता है । भोजाने खल-ज्ञानी और बगुले-भक्तोंका खुब उपहास किया है। भोजा भगत अपनी भक्ति और योगशक्तिके लिये बहुत प्रसिद्ध थे। इनका अनुभव और परीक्षकशक्ति बहुत तीव्र थी। इन्होंने ६५ वर्षकी अवस्था देहत्याग किया। मणिरत्नमाला मणिरत्नमाला तुलसीदासजीकी संस्कृतकी रचना है । इसमें मूल श्लोक कुल ३२ हैं। ये बत्तीस श्लोक प्रश्नोत्तररूपमें लिखे गये हैं। मणिरत्नमालाके ऊपर गुजरातके जगजीवन नामके ब्राह्मणकी संवत् १६७२ में रची हुई टीका भी मिलती है । इसमें अनात्मा और आत्माका बहुत सुंदर प्रतिपादन किया गया है । यह ग्रंथ वैराग्यप्रधान है । मणिरत्नमालाका एक श्लोक निम्न प्रकारसे है: को वा दरिद्रो हि विशालतृष्णः श्रीमांश्च को यस्य समस्ति तोषः । जीवन्मृतो कस्तु निरुद्यमो यः को वामृता स्यात्सुखदा निराशा ॥५॥ अर्थ-दरिद्री कौन है ? जिसकी तृष्णा विशाल है। श्रीमान् कौन है ! जो संतोषी है। जीते हुए भी मृत कौन है ! जो निरुद्यमी है। अमृतके समान सुखदायक कौन है ? निराशा । मणिलाल नभुभाई ये नडियादके रहनेवाले थे । मणिलाल नभुभाई गुजरातके अच्छे साहित्यकार हो गये हैं। इन्होंने षड्दर्शनसमुच्चय आदि ग्रन्थों के अनुवाद किये हैं, और गीतापर विवेचन लिखा है । इनके षड्दर्शनसमुच्चयके अनुवादकी और गीताके विवेचनकी राजचन्द्रजीने समालोचना की है। सुदर्शनगद्यावलिमें इनके लेखोंका संग्रह प्रकाशित हुआ है। मदनरेखा सुदर्शनपुरके मणिरथ राजाके लघुभ्राता युगबाहुकी स्त्रीका नाम मदनरेखा था। मदनरेखा अत्यन्त सुंदरी थी। उसके अनुपम सौंदर्यको देखकर मणिरथ उसपर मोहित हो गया, और उसे प्रसन्न करनेके लिये वह नाना प्रकारके फलपुष्प आदि भेजने लगा। मदनरेखाको जब यह बात मालूम हुई तो उसने राजाको बहुत धिक्कारा, पर इसका मणिरथपर कोई असर न हुआ । अब वह राजा किसी तरह अपने छोटे भाई मदनरेखाके पति युगबाहुको मार डालनेकी घातमें रहने लगा। एक दिन मदनरेखा और युगबाहु दोनों उद्यानमें क्रीड़ा करने गये हुए थे। मणिरथ भी अकेला वहाँ पहुँचा । युगबाहुको जब अपने बड़े भाईके आनेके समाचार मिले तो वह उससे मिलने आया । युगबाहुने झुककर भाईके चरणोंका स्पर्श किया। इसी समय मणिरथने उसपर खङ्गप्रहार किया। मदनरेखाने पतिको मरणासन्न देखकर उसे धर्मबोध दिया । पतिके मर जानेसे मदनरेखाको अपने ज्येष्ठकी ओरसे बहुत भय हुआ। मदनरेखा गर्भवती थी। वह उसी समय किसी जंगलमें निकलकर चली गई, और उसने आधी रातको पुत्र प्रसव किया । वहाँसे वह किसी विद्याधरके हाथ पड़ी । वह भी उसपर मोहित होकर उसे अपनी बी बनानेकी चेष्टा करने लगा। मदनरेखाने विद्याधरसे उसे नंदीश्वर ले चलनेको कहा । वहाँ जाकर किसी मुनिने विद्याधरको स्वदारसंतोष व्रत ग्रहण कराया । इतनेमें मदनरेखाके पतिका जीव जो मरकर
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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