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________________ श्रीमद् राजचन्द्र नहीं की । छोटम बहुत कम बोलते, और कम आहार करते थे । छोटम बाल- ब्रह्मचारी थे । इन्होंने अपना समस्त जीवन अध्यात्ममें ही व्यतीत किया था। छोटमने ब्रजलालजी नामके साधुको अपना गुरु बनाया था। छोटमने अनेक ग्रंथोंकी रचना की है। इनमें प्रश्नोत्तररत्नमाला, धर्मभक्तिआख्यान, बोधचिंतामणि, इंसउपनिषद्सार, वेदान्तविचार आदि मुख्य हैं। छोटम ७३ वर्षकी अवस्थामें समाधिस्थ हुए । जड़भरत ८१६ एक समय राजा भरत नदीके किनारे बैठे हुए ओंकारका जाप कर रहे थे । वहाँ एक गर्भिणी हरिणी पानी पीनेके लिये आई। इतनेमें वहाँ सिंहके गर्जनका शब्द सुनाई पड़ा, और हरिणीने डर के मारे नदीको फाँद जाने प्रयत्न किया । फल यह हुआ कि उसका गर्भ नदीमें गिर पड़ा, आर वह नदीके उस पार पहुँचते ही मर गई । राजर्षि भरत नदी किनारे बैठे बैठे यह घटना देख रहे थे । भरतजीका हृदय दयासे व्याकुल हो उठा । वे उठे और मृगशावकको नदीके प्रवाह से निकाल 1 कर अपने आश्रमको ले गये । वे नित्यप्रति उस बच्चेकी सेवा सुश्रूषा करने लगे । कुछ समय बाद भरतजीको उस हरिणके प्रति अत्यन्त मोह हो गया । एक दिन वह मृग उनके पाससे कहीं भाग गया और अपने झुण्डमें जा मिला। इसपर भरतजीको अत्यंत शोक हुआ, और वे ईश्वराराधनासे भ्रष्ट हो गये । इस अत्यन्त मृगवासनाके कारण भरतजीको दूसरे जन्ममें मृगका शरीर धारण करना पड़ा । भरतजीको मृगजन्ममें अपने किये हुए कर्मपर बहुत पश्चात्ताप हुआ, और वे बहुत असंगभाव से रहने लगे । तत्पश्चात् राजर्षि भरत मृगके शरीरको त्यागकर ब्राह्मणके घर उत्पन्न हुए । भरतजीका यह अन्तिम शरीर था, और इस शरीरको छोड़नेके बाद वे मुक्त हो गये । भरतजी अपने पहिले भवोंको भूले न थे, इसलिये वे असंगभावसे हरिभक्तिपूर्वक अपना जीवन बिताते थे । साधारण लोग भरतजीको जड़, गूँगा या बधिर समझकर उनसे बेगार वगैरह कराते थे, और उसके बदले उन्हें रूखा सूखा अन्न दे देते थे। यह जड़भरतका वर्णन भागवतके आठवें नवमें अध्यायमें आता है । "मुझे जड़भरत और विदेही जनककी दशा प्राप्त होओ ". १ – ' श्रीमद् राजचन्द्र ' पृ. १२४. जनक जनक इक्ष्वाकुवंशज राजा निमिके पुत्र थे । ये मिथिलाके राजा थे । राजा जनक अपने समयके एक बड़े योगी थे, और वे संसारमें जलकमलकी तरह निर्लिप्त रहते थे। जनक ' राजर्षि ' और ' विदेह ' नामसे भी कहे जाते थे । जनक केवल योगी ही नहीं, परन्तु परमज्ञानी और भगवान्‌के भक्त भी थे । ऋषि याज्ञवल्क्य इनके पुरोहित तथा मंत्री थे । तथा शुकदेव आदि अनेक ऋषियोंने जनकजीसे ही उपदेश लिया था । गीतामें भी जनकके निष्काम कर्मयोगकी प्रशंसा की गई है । जनकजीकी पुत्री सीताका विवाह रामचन्द्रजीसे हुआ था । जनकका वर्णन भागवत, महाभारत, रामायण आदि ग्रन्थोंमें मिलता है । 1 जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति श्वेताम्बर साहित्यके १२ उपांगोंमेंसे छट्ठा उपांग माना जाता है। इसमें जम्बूद्वीपका विस्तारसे वर्णन किया गया है। यह जैन भूगोलविषयक ग्रंथ है। इसमें राजा भरतकी कथा
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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