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परिशिष्ट (१)
परिशिष्ट (१) 'श्रीमद् राजचन्द्र में आये हुए ग्रन्थ ग्रन्थकार आदि विशिष्ट
शब्दोंका संक्षिप्त परिचय अकबर
अकबरका पूरा नाम अबुल् फतेह जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर था । इनका जन्म सन् १५४२ में अमरकोट दुआ था । सन् १५५६ में अकबरको राज्य-सिंहासन मिला । अकबर बहुत उपमशील और बुद्धिमान बादशाह था। उसने अपने कौशलसे धीरे धीरे अपना राज्य बहुत बढ़ा लिया, और बहुतसे लोगोंको अपना साथी बना लिया था। उसने अनेक युद्ध भी किये, जिनमें उसे सफलता मिली। अकबर बहुत सहिष्णु थे। वे गोमांस इत्यादिसे परहेज करते थे। अकबरने हिन्दु और मुसलमान दोनोंमें ऐक्य और प्रेमसंबंध स्थापित करनेके लिये 'दीनइलाही'धर्मकी स्थापना की थी। इस धर्मके हिन्दु और मुसलमान दोनों ही अनुयायी थे । अकबरने अमुक दिनोंमें जीवहिंसा न करनेकी भी अपने राज्यमें मनाई कर रक्खी थी। अकबरको विद्याभ्यासका बहुत शौक था। उन्होंने रामायण महाभारत आदि ग्रंथोंके फ़ारसीमें अनुवाद कराये थे। अकबरकी सभामें हिन्दु विद्वानोंको भी बहुत सन्मान मिलता था । अकबर ज्यों ज्यों वृद्ध होते गये, त्यों त्यों उनकी विषय-लोलुपताका हास होता गया। अकबर सोते भी बहुत कम थे । कहते हैं दिनरात मिला कर वे कुल तीन घंटे सोते थे। अकबर बहुत मिताहारी थे । वे दिनमें एक ही बार भोजन करते थे, और उसमें भी अधिकतर दूध, भात और मिठाई ही लेते थे। अकबरका पुत्र सलीम हिन्दुरानी जोधाबाईके गर्भसे पैदा हुआ था । राजचन्द्रजीने अकबरके मिताहारका उल्लेख किया है। अखा
अखा गुजराती साहित्यमें एक अद्वितीय मध्यकालीन कवि माने जाते हैं। इनका जन्म सन् १६१९ में अहमदाबादमें सोनी जातिमें हुआ था। ये अक्षयभगतके नामसे भी प्रसिद्ध हैं। अखाकी बोधप्रधान कविताका बड़ा भाग सातसौ छियालिस छप्पामें है, जिसके सब मिलाकर चवालीस अंग हैं। छप्पाके अतिरिक्त, अखाने अखेगीता, अनुभवबिन्दु, कैवलगीता, चित्तविचारसंवाद, पंचीकरण, गुरुशिष्यसंवाद तथा बहुतसे पद आदिकी भी रचना की है । अखाको दंभ और पाखंडके प्रति अत्यन्त तिरस्कार था। इन्होंने शास्त्रके गूढ सिद्धान्तोको अत्यन्त सरल भाषामें लिखा है। अखा एक अनुभवी विचारशील चतुर कवि थे । इन्होंने सत्संग, सद्गुरु, ब्रह्मरस आदिकी जगह जगह महिमा गाई है। 'अखानी वाणी' नामक पुस्तक 'सस्तुं साहित्य-वर्धक कार्यालय से सन् १९२४ में प्रकाशित हुई है। इनके अन्य ग्रन्थ तथा पद काव्यदोहनमें छपे हैं । राजचन्द्रजीने अखाको मार्गानुसारी बताते हुए उनके ग्रन्थोंके पढ़नेका अनुरोध किया है। उन्होंने अखाके पद भी उद्धृत किये हैं। अध्यात्मकल्पद्रुम
. अध्यात्मकल्पद्रुम वैराग्यका बहुत उत्तम प्रन्थ है । इसके कर्ता श्वेताम्बर विद्वान् मुनिसुंदरसूरि हैं। मुनिसुंदरसूरि सहस्रावधानी थे। कहा जाता है कि इन्हें तपके प्रभावसे पद्मावती आदि देवियाँ