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[६५१, ६५९, १५॥
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· श्रीमद् राजचन्द्र ....... द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव...... संयमके कारण निमितरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव.
इन्य-संयमित देह. क्षेत्र-निवृत्तिवाले क्षेत्रमें स्थिति-विहार, काल-यथासूत्र काल. भाव-यथासूत्र निवृत्ति-साधन-विचार.
अनुभव.
. ध्यान.
ध्यान-ध्यान. ध्यान-ध्यान-ध्यान, ध्यान-ध्यान-ध्यान-ज्यान. ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान. ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान. ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान-ध्यान.
चिद्धातुमय, परमशांत, अडग, एकाग्र, एक खभावमय, असंख्यात प्रदेशात्मक, पुरुषाकार, चिदानन्दघनका ध्यान करो।
का.
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मो.
का आत्यंतिक अभाव । प्रदेशसंबंध-प्राप्त, पूर्व-निष्पन, सत्तामास, उदयप्राप्त, उदीरणाप्राप्त ऐसे चार ना० गो०० और वेदनीयका वेदन करनेसे, जिसे इनका अभाव हो गया ह ऐसे शुद्धस्वरूप जिन चिन्मूर्ति सर्व लोकालोक-भासक चमत्कारके धाम हैं।
मा. बचानावरणीय ०० दर्शनावरणीय मो मोहनीय अवयय ना नाम गो गोत्र
मामाबु.
-अनुवादक.