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________________ ५०४ श्रीमद् राजचन्द्र [पत्र ६२७, ६२८ .....--...--..-.- --.. --.-- ६२७ ... कैम्मदव्वेहिं समं, संजोगो जो होई जीवस्स । सो बंधो णायचो, तस्स वियोगो भवमोक्खो। ६२८ बम्बई, श्रावण १९५२ पंचास्तिकायका संक्षिप्त स्वरूप कहा है:जीव पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश ये पाँच अस्तिकाय कहे जाते हैं । अस्तिकाय अर्थात् प्रदेशसमूहात्मक वस्तु । एक परमाणु प्रमाण अमूर्त वस्तुके भागको प्रदेश कहते हैं । जो वस्तु अनेक प्रदेशात्मक हो उसे अस्तिकाय कहते हैं। एक जीव असंख्यात प्रदेश प्रमाण है । पुद्गल-परमाणु यद्यपि एक प्रदेशात्मक है, परन्तु दो परमाणुओंसे लगाकर असंख्यात, अनंत परमाणु एकत्र हो सकते हैं । इस तरह उसमें परस्पर मिलनेकी शक्ति रहनेसे वह अनंत प्रदेशात्मकता प्राप्त कर सकता है, जिससे वह भी अस्तिकाय कहे जाने योग्य है। धर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेश प्रमाण, अधर्म द्रव्य असंख्यात प्रदेश प्रमाण, और आकाश द्रव्य अनंत प्रदेश प्रमाण होनेसे, वे भी अस्तिकाय हैं । इस तरह पाँच अस्तिकाय हैं । इन पाँच अस्तिकायके एकमेकरूप स्वभावसे इस लोककी उत्पत्ति है, अर्थात् लोक इन पाँच अस्तिकायमय है। .. प्रत्येक जीव असंख्यात प्रदेश प्रमाण है । वे जीव अनंत हैं। एक परमाणुके समान अनंत परमाणु हैं। दो परमाणुओंके एकत्र मिलनेसे अनंत द्वि-अणुक स्कंध होते हैं, तीन परमाणुओंके एकत्र सम्मिलित होनेसे अनंत त्रि-अणुक स्कंध होते हैं । चार परमाणुओं के एकत्र सम्मिलित होनेसे अनंत चार-अणुक स्कंध होते हैं । पाँच परमाणुओंके एकत्र सम्मिलित होनेसे अनंत पाँच-अणुक स्कंध होते हैं । इसी तरह छह परमाणु, सात परमाणु, आठ परमाणु, नौ परमाणु, दस परमाणुओंके एकत्र सम्मिलित होनेसे ऐसे अनंत स्कंध होते हैं । इसी तरह ग्यारह परमाणुसे सौ परमाणु, संख्यात परमाणु असंख्यात परमाणु, तथा अनंत परमाणुओंसे मिलकर बने हुए ऐसे अनंत स्कंध होते हैं। धर्म द्रव्य एक है, वह असंख्यात प्रदेश प्रमाण लोक-व्यापक है। अधर्म द्रव्य एक है, वह भी असंख्यात प्रदेश प्रमाण लोक-व्यापक है।' आकाश द्रव्य एक है, वह अनंत प्रदेश प्रमाण है, यह लोकालोक-व्यापक है । लोक प्रमाण आकाश अखंल्यात प्रदेशात्मक है। १ जीवके कर्मके साथ संयोग होने को बंध, और उसके वियोग होनेको मोष कहते हैं।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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