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________________ ४६२ श्रीमद् राजचन्द्र [पत्र ५३६, ५३७ ५३६ ववाणीआ, श्रावण वदी ६ रवि. १९५१ यहाँ पर्युषण पूर्ण होनेतक रहना संभव है। केवलज्ञान आदिका क्या इस कालमें होना संभव है। इत्यादि प्रश्न पहिले लिखे थे; उन प्रश्नोंपर यथाशक्ति अनुप्रेक्षा तथा श्री."आदिके साथ परस्पर प्रश्नोत्तर करना चाहिये। . . . . .. 'गुणके समुदायसे. भिन्न गुणीका स्वरूप होना संभव है अथवा नहीं?' तुम लोगोंसे हो सके तो इस प्रश्नके ऊपर विचार करना । श्री.""को तो अवश्य विचार करना योग्य है। . . ५३७ ववाणीआ,श्रावण वदी ११शुक्र. १९५१ यहाँसे प्रसंग पाकर लिखे हुए जो चार प्रश्नोंका उत्तर लिखा सो बाँचा है। पहिलेके दो प्रश्नोंके उत्तर संक्षेपमें हैं, फिर भी यथायोग्य हैं । तीसरे प्रश्नका उत्तर सामान्यतः ठीक है, फिर भी उस प्रश्नका उत्तर विशेष सूक्ष्म विचारसे लिखने योग्य है । वह तीसरा प्रश्न इस प्रकार है: 'गुणके समुदायसे भिन्न गुणीका स्वरूप होना संभव है अथवा नहीं!' अर्थात् 'क्या समस्त गुणोंका समुदाय ही गुणी अर्थात् द्रव्य है ! अथवा उस गुणके समुदायके आधारभूत ऐसे भी किसी अन्य द्रव्यका अस्तित्व मौजूद है ?' इसके उत्तरमें ऐसा लिखा है कि आत्मा गुणी है; उसके गुण ज्ञान दर्शन वगैरह भिन्न हैं-इस प्रकार गुणी और गुणकी विवक्षा की है। परन्तु वहाँ विशेष विवक्षा करनी योग्य है । यहाँ प्रश्न होता है कि फिर ज्ञान दर्शन आदि गुणसे भिन्न बाकीका आत्मत्व ही क्या रह जाता है ! इसलिये इस प्रश्नका यथाशक्ति विचार करना योग्य है। . चौथा प्रश्न यह है कि इस कालमें केवलज्ञान होना संभव है या नहीं ? इसका उत्तर इस तरह लिखा है कि प्रमाणसे देखनेसे तो यह संभव है । यह उत्तर भी संक्षिप्त है । इसपर बहुत विचार करना चाहिये। इस चौथे प्रश्नके विशेष विचार करनेके लिये उसमें इतना विशेष और सम्मिलित करना कि जिस प्रमाणसे जैन आगममें केवलज्ञान माना है अथवा कहा है, वह केवलज्ञानका स्वरूप याथातथ्य ही कहा हैक्या ऐसा मालूम होता है या किसी दूसरी तरह ! और यदि वैसा ही केवलज्ञानका स्वरूप हो, ऐसा . मालूम होता हो तो वह स्वरूप इस कालमें भी प्रगट होना संभव है अथवा नहीं ! अथवा जो जैन आगम कहता है, उसके कहनेका क्या कोई जुदा ही कारण है ! और क्या केवलज्ञानका स्वरूप किस दूसरी प्रकारसे होना और समझा जाना संभव है ! इस बातपर यथाशक्ति अनुप्रेक्षण करना उचित है। इसी तरह जो तीसरा प्रश्न है, वह भी अनेक प्रकारसे विचार करने योग्य है । विशेष अनुप्रेक्षापूर्वक इन दोनों प्रश्नोंका. उत्तर, लिखना. बने तो लिखना । प्रथमके दो प्रश्नोंके उत्तर संक्षेपमें लिखे. हैं, उन्हें विशेषतासे लिखना बन सके तो उन्हें भी लिखना ।. तुमने पाँच प्रश्न लिखे हैं । उनमेंके तान प्रश्नोंका उत्तर यहाँ संक्षेपसे लिखा है। .. प्रथम प्रश्नः-जातिस्मरण ज्ञानवाला मनुष्य पहिलेके भवको किस तरह जान लेता है! . .. उत्तर:-जिस तरह छुटपनमें कोई गाँव, वस्तु आदि देखी हों, और बरे होनेपर किसी। प्रसंगपर जिस समय उन गाँव आदिका आत्मामें स्मरण होता है, उस समय उन गाँव आदिका पात्मामें,
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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