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पत्र४४७ गांधीजीके प्रभोंके उत्तर] विविध पत्र आदि संग्रह-२७वाँ वर्ष
गीता वेदव्यासजीकी रची हुई पुस्तक मानी जाती है, और महात्मा श्रीकृष्णने अर्जुनको उस प्रकारका बोध किया था, इसलिये मुख्यरूपसे श्रीकृष्ण ही उसके कर्ता कहे जाते हैं; यह बात संभव है । ग्रंथ श्रेष्ठ है । उस तरहका आशय अनादि कालसे चला आ रहा है, परन्तु वे ही श्लोक अनादिसे चले आते हों, यह संभव नहीं है; तथा निष्क्रिय ईश्वरसे उसकी उत्पत्ति होना भी संभव नहीं । वह क्रिया किसी सक्रिय अर्थात् देहधारीसे ही होने योग्य है; इसलिये जो सम्पूर्ण ज्ञानी है वह ईश्वर है, और उसके द्वारा उपदेश किये हुए शास्त्र ईश्वरीय शास्त्र हैं, यह माननेमें कोई बाधा नहीं है।
११. प्रश्नः-पशु आदिके यज्ञ करनेसे थोडासा भी पुण्य होता है, क्या यह सच है !
उत्तरः-पशुके वधसे, होमसे अथवा उसे थोड़ासा भी दुःख देनेसे पाप ही होता है, तो फिर उसे यज्ञमें करो अथवा चाहे तो ईश्वरके धाममें बैठकर करो। परन्तु यज्ञमें जो दान आदि क्रियायें होती हैं, वे कुछ पुण्यकी कारणभूत हैं । फिर भी हिंसा-मिश्रित होनेसे उनका भी अनुमोदन करना योग्य नहीं है।
१२. प्रश्नः—जिस धर्मको आप उत्तम कहते हो, क्या उसका कोई प्रमाण दिया जा सकता है !
उत्तरः--प्रमाण तो कोई दिया न जाय, और इस प्रकार प्रमाणके बिना ही यदि उसकी उत्तमताका प्रतिपादन किया जाय तो फिर तो अर्थ-अनर्थ, धर्म-अधर्म सभीको उत्तम ही कहा जाना चाहिये । परन्तु प्रमाणसे ही उत्तम-अनुत्तमकी पहिचान होती है । जो धर्म संसारके क्षय करनेमें सबसे उत्तम हो और निजस्वभावमें स्थिति करानेमें बलवान हो, वही धर्म उत्तम और वही धर्म बलवान है।
१३. प्रश्न:-क्या आप खिस्तीधर्मके विषयमें कुछ जानते हैं ? यदि जानते हैं तो क्या आप अपने विचार प्रगट करेंगे?
उत्तरः-खिस्तीधर्मके विषय में मैं साधारण ही जानता हूँ। भरतखंडके महात्माओंने जिस तरहके धर्मकी शोध की है—विचार किया है, उस तरहके धर्मका किसी दूसरे देशके द्वारा विचार नहीं किया गया, यह तो थोड़ेसे अभ्याससे ही समझमें आ सकता है । उसमें ( खिस्तीधर्ममें ) जीवकी सदा परवशता कही गई है, और वह दशा मोक्षमें भी इसी तरहकी मानी गई है। जिसमें जीवके अनादि स्वरूपका यथायोग्य विवेचन नहीं है, जिसमें कर्म-बंधकी व्यवस्था और उसकी निवृत्ति भी जैसी चाहिये वैसी नहीं कही, उस धर्मका मेरे अभिप्रायके अनुसार सर्वोत्तम धर्म होना संभव नहीं है । खिस्तीधर्ममें जैसा मैंने ऊपर कहा, उस प्रकारका जैसा चाहिये वैसा समाधान देखने नहीं आता । इस वाक्यको मैंने मतभेदके वश होकर नहीं लिखा। अधिक पूंछने योग्य मालूम हो तो पूछना-तो विशेष समाधान हो सकेगा।
११. प्रश्नः-वे लोग ऐसा कहते हैं कि बाइबल ईश्वर-प्रेरित है । ईसा ईश्वरका अवतार हैवह उसका पुत्र है और था।
उत्तर:-यह बात तो श्रद्धासे ही मान्य हो सकती है, परन्तु यह प्रमाणसे सिद्ध नहीं होती । जो बात गीता और वेदके ईश्वर-कर्तृत्वके विषयमें लिखी है, वही बात बाइबलके संबंधमें भी समझना चाहिये । जो जन्म-मरणसे मुक्त हो, वह ईश्वर अवतार ले, यह संभव नहीं है। क्योंकि राग