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________________ पत्र ७३, ७४, ७५, ७६] विविध पत्र आदि संग्रह-२३वाँ वर्षे १७९ ७३ बम्बई, पौष सुदी ३ बुध. १९४६ नीचेके नियमोंपर बहुत लक्ष दिया जाना चाहिये१. एक बात करते हुए उसके बीचमें ही आवश्यकता बिना दूसरी बात न करनी चाहिये । २. कही हुई बातको पूरी तरहसे सुनना चाहिये । ३. स्वयं धीरजके साथ उसका उत्तम उत्तर देना चाहिये । ४. जिसमें आत्म-बाधा अथवा आत्म-हानि न हो वह बात कहनी चाहिये । ५. धर्मके संबंधमें हालमें बहुत ही कम बात करना । ६. लोगोंसे धर्म-व्यवहारमें न पड़ना । ७४ बम्बई, पौष १९४६ मुझे तेरा समागम इस प्रकारसे क्यों हुआ ! क्या कहीं तू गुप्त पड़ा हुआ था ! सर्वगुणांश ही सम्यक्त्व है। ७५ बम्बई, पौष सुदी ३ बुध. १९४६ बहुतसे उत्कृष्ट साधनोंसे यदि कोई ऐसा योजक पुरुष ( होनेकी इच्छा करे तो) धर्म, अर्थ और कामकी एकत्रता प्रायः एक ही पद्धतिमें—एक ही समुदायमें—साधारण श्रेणीमें लानेका प्रयत्न करे, और वह प्रयत्न निराशभावसे १. धर्मका प्रथम साधन. २. फिर अर्थका साधन. ३. फिर कामका साधन. ४. अन्तमें मोक्षका साधन. बम्बई, पौष सुदी ३, १९४६ सत्पुरुषोंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थीको प्राप्त करनेका उपदेश दिया है । ये चार पुरुषार्थ निम्न दो प्रकारसे समझमें आये हैं: १. वस्तुके स्वभावको धर्म कहते हैं। २. जब और चैतन्यसंबंधी विचारोंको अर्थ कहते हैं । ३. चित्त-निरोधको काम कहते हैं। ४. सब बंधनोंसे मुक्त होनेको मोक्ष कहते हैं। -ये चार प्रकार सर्वसंग-परित्यागीकी अपेक्षासे ठीक ठीक बैठते हैं। सामान्य रीतिसे निम्नरूपसेधर्म-जो संसारमें अधोगतिमें गिरनेसे रोककर पकड़कर रखता है वह धर्म है।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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