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श्रीमद् राजचन्द्र
[पत्र ६५,६६
नित्यचर्या वर्षकल्प अन्तिम अवस्था
-ये बातें परम आवश्यक हैं. देशत्यागीअवश्यक्रिया
नित्यकल्प भक्ति
अणुव्रत दान, शील, तप, भावका स्वरूप, ज्ञानके लिये उसका अधिकार ।
-ये बातें परम आवश्यक हैं.
(२)
ज्ञानका उद्धारश्रुतज्ञानका उदय करना चाहिये । योगसंबंधी ग्रंथ
त्यागसंबंधी ग्रंथ प्रक्रियासंबंधी ग्रंथ
अध्यात्मसंबंधी ग्रंथ धर्मसंबंधी ग्रंथ
उपदेश ग्रंथ आख्यान ग्रंथ
द्रव्यानुयोगी ग्रंथ
-इत्यादि विभाग करने चाहिये. -उनका क्रम और उदय करना चाहिये. निग्रंथ धर्म
गच्छ आचार्य
प्रवचन उपाध्याय
द्रव्यलिंगी मुनि
अन्य दर्शनसंबंधी गृहस्थ
-इन सबकी योजना करनी चाहिये. मतमतांतर
मार्गकी शैली उसका स्वरूप
जीवनका बिताना उसको समझाना
उद्योत -यह विचार।
बम्बई, कार्तिक वदी १ शुक्र. १९४६ नाना प्रकारके मोहके कृश होनेसे आत्माकी दृष्टि अपने स्वाभाविक गुणसे उत्पन्न मुखकी प्राप्तिकी ओर जाती है, और बादमें उसे प्राप्त करनेका प्रयत्न करती है, यही दृष्टि उसे उसकी सिद्धि प्रदान करती है।