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भीमद् राजवन्द्र
[पत्र ६३
कुछ ! और एक जगह निरावरणपना, दूसरी जगह आवरण, और तीसरी जगह निरावरण ऐसा कैसे बन सकता है ? इसका चित्र बनाकर विचार करो।
सर्वव्यापक आत्माः
Applie
माया
जगत्
घटाकाश, जीव. बोध. घटव्यय क्या फल है
बोध
लोक . विराट ईश्वर
काआवरण
इस तरह तो यह ठीक ठीक नहीं बैठता । (२) प्रकाशस्वरूप धाम है। उसमें अनंत अप्रकाशसे भरे हुए अंतःकरण हैं । उससे फल क्या होता है !
फल यह होता है कि जहाँ जहाँ वे अन्तःकरण व्याप्त हो जाते हैं वहाँ वहाँ माया भासमान होने लगती है, आत्मा संगरहित होनेपर भी संगसहित मालूम होने लगती है, अकर्ता होनेपर भी कर्ता मालूम होने लगती है, इत्यादि अनेक प्रकारकी विपरीतताएँ दिखाई देने लगती हैं।
तो उससे होता क्या है ? आत्माको बंधकी कल्पना हो तो उसका क्या करें ! अन्तःकरणका सम्बन्ध दूर करनेके लिये उसे उससे भिन्न समझें । भिन्न समझनेसे क्या होता है ! आत्मा निजस्वरूप दशामें रहती है। फिर चाहे एकदेश निरावरण हो अथवा सर्वदेश निरावरण हो !