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________________ १४४ श्रीमद् राजवन्द्र [पत्र ३०, ३१, ३२ ३० ववाणीआ, माघ वदी ७, १९४५ रागहीन पुरुषोंको नमस्कार सत्पुरुषोंका यह महान् उपदेश है कि उदय आये हुए कर्मीको भोगते हुए नये कर्मोका बंध न हो, इससे आत्माको सचेत रखना। ___ यदि वहाँ तुम्हें समय मिलता हो तो जिन-भक्तिमें अधिकाधिक उत्साहकी वृद्धि करते रहना, और एक घडीभर भी सत्संग अथवा सत्कथाका मनन करते रहना । (किसी समय ) शुभाशुभ कर्मके उदयके समय हर्ष शोकमें न पड़कर भोगनेसे ही छुटकारा है, और यह वस्तु मेरी नहीं, ऐसा मानकर समभावकी श्रेणिको बढ़ाते रहना । ३१ ववाणीआ, माघ वदी १० सोम. १९४५ रागहीन पुरुषोंको नमस्कार निग्रंथ भगवान्के प्रणीत किये हुए पवित्र धके लिये जो कुछ भी उपमायें दी जाये वे सब न्यून ही हैं । आत्मा अनंतकाल भटकी, वह केवल अपने निरुपम धर्मके अभावके ही कारण । जिसके एक रोममें भी किंचित् भी अज्ञान, मोह अथवा असमाधि नहीं रही उस सत्पुरुषके वचन और बोधके लिये हम कुछ भी नहीं कह सकते, उन्हींके वचनमें प्रशस्तभावसे पुनः पुनः अनुरक्त होना इसीमें अपना सर्वोत्तम श्रेय है। कैसी इनकी शैली है ! जहाँ आत्माके विकारमय होनेका अनंतवाँ अंश भी बाकी नहीं रहा ऐसा शुद्ध स्फटिक, फेन और चन्द्रसे भी उज्ज्वल शुक्लध्यानकी श्रेणीसे प्रवाहरूपमें निकले हुए उस निग्रंथके पवित्र वचनोंकी मुझे और तुम्हें त्रिकाल श्रद्धा रहे ! यही परमात्माके योगबलके आगे परम याचना है। ३२ ववाणीआ, फाल्गुन सुदी ९ रवि. १९४५ निर्ग्रन्थ महात्माओंको नमस्कार मोक्षके मार्ग दो नहीं हैं । भूतकालमें जिन जिन पुरुषोंने मोक्षरूप परम शांति पाई है, उन सब सत्पुरुषोंने इसे एक ही मार्गसे पाई है, वर्तमानकालमें भी उसीसे पाते हैं, और भविष्यकालमें भी उसीसे पावेंगे । उस मार्गमें मतभेद नहीं है, असरलता नहीं है, उन्मत्तता नहीं है, भेदाभेद नहीं है, और मान्यामान्यता नहीं है । वह सरल मार्ग है, वह समाधि मार्ग है, तथा वह स्थिर मार्ग है; और वह स्वाभाविक शांतिस्वरूप है । उस मार्गका सब कालमें अस्तित्व है । इस मार्गके मर्मको पाये बिना किसीने भी भूतकालमें मोक्ष नहीं पाई, वर्तमानकालमें कोई नहीं पा रहा, और भविष्यकालमें कोई पायेगा नहीं। श्रीजिन भगवान्ने इस एक ही मार्गके बतानेके लिये हजारों क्रियाएँ और हजारों उपदेश
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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