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श्रीमद् राजचन्द्र
[विविध प्रश्न
प्र.-गुणस्थानक कितने हैं ! उ.-चौदह । प्र.-उनके नाम कहिये ।
उ.-१ मिथ्यात्वगुणस्थानक । २ सास्वादन (सासादन) गुणस्थानक । ३ मिश्रगुणस्थानक । ४ अवरतिसम्यग्दृष्टिगुणस्थानक । ५ देशविरतिगुणस्थानक । ६ प्रमत्तसंयतगुणस्थानक । ७ अप्रमत्तसंयतगुणस्थानक । ८ अपूर्वकरणगुणस्थानक । ९ अनिवृत्तिबादरगुणस्थानक । १० सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानक । ११ उपशांतमोहगुणस्थानक । १२ क्षीणमोहगुणस्थानक । १३ सयोगकेवलीगुणस्थानक । १४ अयोगकेवलीगुणस्थानक ।
१०४ विविध प्रश्न
प्र.-केवली तथा तीर्थकर इन दोनोंमें क्या अंतर है !
उ.-केवली तथा तीर्थकर शक्तिमें समान हैं, परन्तु तीर्थकरने पहिले तीर्थकर नामकर्मका बंध किया है, इसलिये वे विशेषरूपसे बारह गुण और अनेक अतिशयोंको प्राप्त करते हैं।
प्र.-तीर्थकर घूम घूम कर उपदेश क्यों देते हैं ! वे तो वीतरागी हैं। उ.-पूर्व में बाँधे हुए तीर्थकर नामकर्मके वेदन करनेके लिये उन्हें अवश्य ऐसा करना पड़ता है। प्र.-आजकल प्रचलित शासन किसका है ? उ.-श्रमण भगवान् महावीरका । प्र.-क्या महावीरसे पहले जैनदर्शन था ! उ.-हाँ, था। प्र.-उसे किसने उत्पन्न किया था ! उ.-उनके पहलेके तीर्थंकरोंने । प्र.-उनके और महावरिके उपदेशमें क्या कोई भिन्नता है !
उ.-तत्त्वदृष्टि से एक ही हैं । भिन्न भिन्न पात्रको लेकर उनका उपदेश होनेसे और कुछ कालभेद होनेके कारण सामान्य मनुष्यको भिन्नता अवश्य मालूम होती है, परन्तु न्यायसे देखनेपर उसमें कोई भिन्नता नहीं है।
प्र.-इनका मुख्य उपदेश क्या है !
उ.-उनका उपदेश यह है कि आत्माका उद्धार करो, आत्माकी अनंत शक्तियोंका प्रकाश करो और इसे कर्मरूप अनंत दुःखसे मुक्त करो।
प्र.-इसके लिये उन्होंने कौनसे साधन बताये हैं ?
उ.-व्यवहार नयसे सद्देव, सद्धर्म और सद्गुरुका स्वरूप जानना; सदेवका गुणगान करना; तीन प्रकारके धर्मका आचरण करना; और निम्रन्थ गुरुसे धर्मका स्वरूप समझना ।
प्र.-तीन प्रकारका धर्म कौनसा है ! उ.-सम्यग्ज्ञानरूप, सम्यग्दर्शनरूप और सम्यक्चारित्ररूप ।