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________________ ब्रमचर्यके विषयमें सुभाषित] मोक्षमाला - -- - -- ---- एक बार इस नगरमें कोई उत्सव था। नगरके बाहर नगर-जन आनंदसे इधर उधर घूम रहे थे, धूमधाम मच रही थी । सुदर्शन सेठके छह देवकुमार जैसे पुत्र भी वहाँ आये थे । अभया रानी भी कपिला नामकी दासीके साथ ठाठबाटसे वहाँ आई थी। सुदर्शनके देवपुतले जैसे छह पुत्र उसके देखनमें आये। उसने कपिलासे पूँछा, ऐसे रम्य पुत्र किसके हैं ? कपिलाने सुदर्शन सेठका नाम लिया। सुदर्शनका नाम सुनते ही रानीकी छातीमें मानों कटार लगी, उसको गहरा घाव लगा । सब धूमधाम बीत जानेके पश्चात् माया-कथन घड़कर अभया और उसकी दासाने मिलकर राजासे कहा, "तुम समझते होगे कि मेरे राज्यमें न्याय और नीति चलती है, मेरी प्रजा दुर्जनोंसे दुःखी नहीं, परन्तु यह सब मिथ्या है । अंतःपुरमें भी दुर्जन प्रवेश करते हैं, यहाँ तक तो अंधेर है ! तो फिर दूसरे स्थानोंके लिये तो पूछना ही क्या? तुम्हारे नगरके सुदर्शन सेठने मुझे भोगका आमंत्रण दिया, और नहीं कहने योग्य कथन मुझे सुनना पड़ा । परन्तु मैंने उसका तिरस्कार किया। इससे विशेष अंधेर और क्या कहा जाय !" बहुतसे राजा वैसे ही कानके कच्चे होते हैं, यह बात प्रायः सर्वमान्य जैसी है, उसमें फिर स्त्रीके मायावी मधुर वचन क्या असर नहीं करते ! गरम तेलमें ठंडे जल डालनेके समान रानीके वचनोंसे राजा क्रोधित हुआ। उसने सुदर्शनको शूलीपर चढ़ा देनेकी तत्काल ही आज्ञा दी, और तदनुसार सब कुछ हो भी गया । केवल सुदर्शनके शूलीपर बैठनेकी ही देर थी। कुछ भी हो, परन्तु सृष्टिके दिव्य भंडारमें उजाला है । सत्यका प्रभाव बँका नहीं रहता। सुदर्शनको शूलीपर बैठाते ही शूली फटकर उसका झिलमिलाता हुआ सोनेका सिंहासन हो गया। देवोंने दुंदुभिका नाद किया, सर्वत्र आनन्द फैल गया । सुदर्शनका सत्यशील विश्व-मंडलमें झलक उठा। सत्यशीलकी सदा जय होती है। सुदर्शनका शील और उत्तम दृढ़ता ये दोनों आत्माको पवित्र श्रेणीपर चढ़ाते हैं। . ३४ ब्रह्मचर्यकै विषयमें सुभाषित जो नवयौवनाको देखकर लेशभर भी विषय विकारको प्राप्त नहीं होते, जो उसे काठकी पुतलीके समान गिनते हैं, वे पुरुष भगवान्के समान हैं ॥१॥ इस समस्त संसारकी नायकरूप रमणी सर्वथा शोकस्वरूप हैं, उनका जिन्होंने त्याग किया, उसने सब कुछ त्याग किया ॥२॥ जिस प्रकार एक राजाके जीत लेनेसे उसका सैन्य-दल, नगर और अधिकार जीत लिये जाते हैं, उसी तरह एक विषयको जीत लेने समस्त संसार जीत लिया जाता है ॥३॥ ___जिस प्रकार थोड़ा भी मदिरापान करनेसे अज्ञान छा जाता है, उसी तरह विषयरूपी अंकुरसे ज्ञान और ध्यान नष्ट हो जाता है ॥ ४॥ ३४ ब्रह्मचर्यविषे सुभाषित दोहरा निरखीने नव यौवना, लेश न विषयनिदान; गणे काष्ठनी पूतळी, ते भगवानसमान ॥१॥ आ सपळा संसारनी, रमणी नायकरूप; ए त्यागी, त्याग्युं बधुं, केवळ शोकस्वरूप ॥ २॥ एक विषयने जीतता, जीत्यो सौ संसार; नृपति जीतता जीतिये, दळ, पुर, ने अधिकार ॥ ३॥ विषयरूप मंकूरथी, टळे हान ने ध्यान; लेश मदीरापानथी, छोके ज्यम अशान ॥ ४॥
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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