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श्रीमद् राजचन्द्र
[प्रत्याख्यान
साँझको सभा विसर्जन हुई और राजा अन्तःपुरमें गया । तत्पश्चात् जिस जिसने क्रय-विक्रयके लिये माँसकी बात कही थी, अभयकुमार उन सबके घर गया। जिसके घर अभयकुमार गया, वहाँ सत्कार किये जानेके बाद सब सामंत पूंछने लगे, कि आपने हमारे घर पधारनेका कैसे कष्ट उठाया ! अभयकुमारने कहा, " महाराज श्रेणिकको अकस्मात् महारोग उत्पन्न हो गया है । वैद्योंके इकडे करनेपर उन्होंने कहा है, कि यदि कोमल मनुष्यके कलेजेका सवा पैसेभर माँस मिले तो यह रोग मिट सकता है। तुम लोग राजाके प्रिय-मान्य हो. इसलिये मैं तुम्हारे यहाँ इस माँसको लेने आया हूँ।" प्रत्येक सामंतने बिचार किया कि कलेजेका माँस विना मरे किस प्रकार दिया सकता है ! उन्होंने अभयकुमारसे कहा, महाराज, यह तो कैसे हो सकता है ! यह कहनेके पश्चात् प्रत्येक सामंतने अभयकुमारको अपनी बातको राजाके आगे न खोलनेके लिये बहुतसा द्रव्य दिया । अभयकुमारने इस द्रव्यको ग्रहण किया । इस तरह अभयकुमार सब सामंतोंके घर फिर आया । कोई भी सामंत माँस न दे सका,
और अपनी बातको छिपानेके लिये उन्होंने द्रव्य दिया। तत्पश्चात् दूसरे दिन जब सभा भरी, उस समय समस्त सामंत अपने अपने आसनपर आ आकर बैठे । राजा भी सिंहासनपर विराजमान था । सामंत लोग राजासे कलकी कुशल पूछने लगे । राजा इस बातसे विस्मित हुआ। उसने अभयकुमारकी ओर देखा । अभयकुमार बोला, " महाराज ! कल आपके सामंतोंने सभामें कहा था, कि आजकल माँस सस्ता मिलता है । इस कारण मैं उनके घर माँस लेने गया था । सबने मुझे बहुत द्रव्य दिया, परन्तु कलेजेका सवा पैसाभर माँस किसीने भी न दिया । तो इस माँसको सस्ता कहा जाय या महँगा ।" यह सुनकर सब सामंत शरमसे नीचे.देखने लगे। कोई कुछ बोल न सका । तत्पश्चात् अभयकुमारने कहा, " यह मैंने कुछ आप लोगोंको दुःख देनेके लिये नहीं किया, परन्तु उपदेश देनेके लिये किया है। हमें अपने शरीरका माँस देना पड़े तो हमें अनंतभय होता है, कारण कि हमें अपनी देह प्रिय है । इसी तरह अन्य जीवोंका माँस उन जीवोंको भी प्यारा होगा । जैसे हम अमूल्य वस्तुओंको देकर भी अपनी देहकी रक्षा करते हैं, वैसे ही वे बिचारे पामर प्राणी भी अपनी देहकी रक्षा करते होंगे । हम समझदार और बोलते चालते प्राणी हैं, वे विचारे अवाचक और निराधार प्राणी हैं । उनको मृत्युरूप दुःख देना कितना प्रबल पापका कारण है ! हमें इस वचनको निरंतर लक्षमें रखना चाहिये कि " सब प्राणियोंको अपना अपना जीव प्रिय है, और सब जीवोंकी रक्षा करने जैसा एक भी धर्म नहीं।" अभयकुमारके भाषणसे श्रेणिक महाराजको संतोष हुआ । सब सामंतोंने भी शिक्षा ग्रहण की। सामंतोंने उस दिनसे माँस न खानेकी प्रतिज्ञा की । कारण कि एक तो वह अभक्ष्य है, और दूसरे वह किसी जीवके मारे विना नहीं मिलता, बड़ा अधर्म है । अतएव प्रधानका कथन सुनकर उन्होंने अभयदानमें लक्ष दिया। अभयदान आत्माके परम सुखका कारण है।
३१ प्रत्याख्यान 'पञ्चखाण' शब्द अनेक बार तुम्हारे सुननेमें आया होगा। इसका मूल शब्द 'प्रत्याख्यान' है। यह (शब्द) किसी वस्तुकी तरफ चित्त न करना, इस प्रकार तत्त्वसे समझकर हेतुपूर्वक नियम करनेके अर्थमें प्रयुक्त होता है । प्रत्याख्यान करनेका हेतु महा उत्तम और सूक्ष्म है । प्रत्याख्यान नहीं