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पांव चरित्र.
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जणानं, पांवोनां शून्य सैन्यमां श्रावी अर्जुन श्रने डुपराजपुत्रनी साथे दी - र्घकाल काल युद्ध करी ने मथी तेजना (पांमवोना ) पांच पुत्रोने मारी तेमनां मस्तको दुर्योधननी प्रागल मूकीने प्रणाम करवा लाग्या. दुर्योधन पण पांव पुत्रोनां मस्तकोने जोइ बहु खेद पामतो बतो तेमने कहेवा लाग्यो के, रे धिक्कार बे ! धिक्कार के !! जे तमे म्हारी श्रागल था बालकोनां मस्तको नइ श्राव्या. निश्वे म्हारुं तेवुं ज्ञाग्य नथी के, हुं पांमवानुं मृत्यु जोवुं. " महा वेदनाथी पीमा पामेलो दुर्योधन या प्रमाणे कहेतो बतो तुरत मृत्यु पाम्यो. रबी शोकमां बूमी गयेला चित्तवाला कृपाचार्यादिक क्यांश चाया गया.
दवे पांव अनुकुल नक्तिवालां वचनोए करीने श्रीबलइने पोतानां सैन्य प्रत्ये तेमी लाव्या. त्यां तेल पोताना पुत्रोने मृत्यु पामेला जाली मनमां बहु शोक करवा लाग्या. पती तेल सरस्वती नदीने कांठे जइ पोताना ते मृन्यु पामेला पांच पुत्रोनां, कौरवोनां श्रने बीजा श्रेष्ठ राजाननां प्रेत कर्यो कयां. त्यारपवी दशार्होनी संमतीथी संतुष्ट चित्तवाला रामकृष्णादिके फरीथी महोत्सव पूर्वक श्री युधिष्ठिरने हस्तिनापुरने विषे राज्याभिषेक कस्यो. नूजा बलश्री विश्वना शत्रुनने जीती विजय मलवनारा, श्री शेष जीष्म थने कर्णादि भूपतियोंने युद्ध मां पराभव पमामी, तथा कौरवाना असंख्य सैन्य मदासागरने बलथी मथनं कररी विजय लक्ष्मीना पतिपणाने पामेला ते पांचे पांवो पोतानां हस्तिनापुर नगरने विषे राज्य जोगववा लाग्या.
इति कृषिमंगलवृत्तौ पांवचरित्रे श्री कौरवा दियश्रीपांमवज यज्ञवन पुनः राज्योप विशननाम षष्टो धिकारः समाप्तः
पी शत्रुना दंजने तोमी नाखनारा प्रने सर्व साम्राज्यना लानने पामेला पinal निरंतर चलती नीतिना बलवमे प्रजानुं पुत्रनी पेठे पालन करवा लाग्या. कोइ वखते श्री जिनेश्वरना धर्मना मर्मने जाणनारा, पवित्र शरीवाला ने हिते एवा धर्मपुत्र युधिष्ठिरे बहु जय पामता उता पोताना श्रीमनादि मनादि बंधुक के, " प्रापणा पिता पांकुराजा के, जे मृत्यु पामीने देवलोकमां देवता थया बे, ते आज प्रावीने मने एम कदेवा लाग्या के, हे वत्सो ! तमे पोताना गोत्रघातादि महा घोर पाप करयुं छे. ते पाप समूहथी,
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