________________
(४६४) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. वीर शिरोमणि अर्योधन ! तने आम नासी जq योग्य नथी. कारण सत्पुरुषो संकट उतां पण पोताना कुलने लजा करावनालं जे कार्य होय ते काम करतानथी. अरे वीर एवो अर्जुन कोप पाम्ये बते तुं आ सरोवरमां शुं रहि शके तेम ? जे विद्यावाणोवमे समुने शोषण करवा समर्थ, तेनी आगल पा सरोवर कोण मात्र ? जो तुं अमारा सर्वनी साथे युः६ करवा समर्थ न होय तो अमारामांधी गमे तेनी साथे त्हारी मरजी होय तेवां शस्त्रथी युःक्ष करवाने तैयार था.” पांमवोनां आवां वचन सांजली मनस्वी अने धारण करयु
महाबल जेणे एवा अर्योधने कह्यु के, “हुँ, नुजाबलवाला नीमसेनन्नमनी साथे गदावके युः करीश.” पांमवोए ते वात कबुल करी एटले ऽर्योधन जसमांथी जाणे जलज होयनी ? एम वेगथी निकल्यो. पठी बीजा सर्व सुन्नटो दूर रह्ये ते महानुज पराक्रमवंत एवा जुर्योधन अने नीमसेन बन्ने जणा गदानवमे करीने युद्ध करवा माटे रणनूमिमां सामसामा दोमचा. बन्ने जणान चारे तरफनी एक बीजाना गदा प्रहारोने स्खलना पमामता अने आकाशमां नचलता उता क्रोधथी राती कांतिवाला बनीने लोकोने बहु कुप्रेकरूप देखा. वा लाग्या. पठी नीमसेने क्रोधथी नचलवानी कलामां प्रवीण एवा पुर्योधनने प्रचंग वृदनी पेठे वेगथी पृथ्वी पर पामी दीधो. पठी पृथ्वी नपर प. मेला दुर्योधननां मस्तकने जीमसेने पांमुना प्रहारथी चूर्णरूप करी नाख्यु. आवा कार्यने जो बलन्नना मनमां बहु क्रोध थयो. जो के बलन पांमुपुत्रोने हणवा समर्थ हता, तोपण ते पितादिकना नयथी तेम न करता पांमवोने जीवता मूकीने अने तेमनो तिरस्कार करी मनमां बहु क्रोध पामता उता क्यांश चाल्या गया. विधिना जाण एवा पांमवो पण पोतानी सेनाना र. क्षण माटे पदराजपुत्रने तथा अर्जुनने राखी पोते बलन्नने शांति पमामवा तेमनी पाठल गया. पाउल कृतवर्मा, अश्वस्थामा अने क्रपाचार्य ए त्रण ज. पान, दीनमुख थइ ऽर्योधनने जोवा माटे रणनूमि प्रत्ये प्राव्या. त्यां तेन तेवी अवस्थामा पमेला अर्योधनने जोइ आदरथी कहेवालाग्या के, “दे स्वामी न्! प्रसन्न थइ अमने आशा आपो के, जेथी अमे आजेज ते पांमुपुत्रोने मा री नाखीए." तेननां आवां वचन सांजली हर्ष पामेला ऽर्योधने पोतानां चल रणमा नमि रहेला तेनने पांमवोनो वध करवानी आझा आपी, पठी ते त्रयो