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प्राथन'
अाधुनिक हिन्दी गद्य के निर्माण का प्रारम्भ सच पूछिये तो राजा शिवप्रसाद सितारे हिन्द के समय से ही होता है । यह सच है कि स्वयं राजा । __ साहब हिन्दी गद्य का कोई निश्चित स्वरूप स्थिर नहीं कर सके क्योकि प्रान्तीय शिक्षा विभाग के उच्च पदाधिकारी होने के कारगा उस समय उनको हिन्दी उर्दू के समझौते का मार्ग स्वीकार करना पड़ा-किसी प्रकार से भी हो, नागरी लिपि और हिन्दी भाषा, शिक्षा-विभाग के द्वारा, सर्वसाधारण जनता । में अपना घर कर लेवे, यही उनका लक्ष्य था-इसके लिए उन्होंने पूर्ण प्रयत्न किया, और सफल भी हुए।
हिन्दी के विशुद्ध रूप के कई पक्षपाती उक्त राजा साहब के समय में ही उत्पन्न हो चुके थे; और इन विद्वानों ने अपनी लेखनी द्वारा, तथा अन्य प्रकार से भी, हिन्दी गद्य को अच्छा स्वरूप दिया, जिसको भारतेन्दु जी ने स्थिर-स्थायी बना दिया। सौभाग्य से भारतेन्दु-काल में बहुत अच्छे-अच्छे
गद्य-लेखक हिन्दी-संसार में मौजूद थे, और उन्होंने अपने इस साहित्यिक ... नेता का साथ दिया; और हिन्दी-गद्य को अपने त्याग और अपने तप से इस दर्जे तक पहुंचाया।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के बाद आचार्य द्विवेदी जी का, वर्तमान हिन्दीगद्य-निर्माण मे बहुत बड़ा हाथ है । क्योंकि भारतेन्दु-काल के गद्य-लेखकों की रचना देखने से स्पष्ट मालूम होता है कि उनको व्याकरण के नियमों की उतनी परवा नहीं थी, जितनी अपने लिखने की धुन की ! अपने मन का साहित्य तैयार करना उनका प्रधान लक्ष्य था-शैली अपनी थी ही। स्वयं भारतेन्दु जी ने तो अपनी रचना में अपनी परिमार्जित शैली का काफी ध्यान रक्खा है; और उनकी रचना में व्याकरण के अशुद्ध प्रयोग भी उतने नहीं पाये जाते; परन्तु उनके समसामयिक कई गद्यकार प्रायः अपनी धुन में ही मस्त थे । वे भारतेन्दु को नेता मानते हुए भी अपनी लहर में ही चलते थे,
और यह उनका व्यक्तित्व था, जिस पर उनकी भाषा-शैली खड़ी है । इनकी गद्य रचना में व्याकरण के नियमों की अवहेलना स्पष्ट दिखाई देती है। इसमें