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राजा भोज का सपना] . देखकर प्रसन्न हो जावें और मेरा नाम इस संसार में अतुले कीर्ति पावे।"
यह सुनकर सारा दरबार पुकार उठा कि “धन्य महाराज ! क्यों न हो १ जब ऐसे हो तब तो ऐसे ही। अपने इस कलिकाल को सतयुग बना दिया, मानो धर्म का उद्धार करने को इस जगत् में अवतार लिया। श्राज आप से बढ़ कर और दूसरा कौन ईश्वर का प्यारा है, हमने तो पहले ही से
आपको साक्षात् धर्मराज बिचारा है ।" व्यास जी ने कथा प्रारंभ की, भजन, कीर्तन होने लगा। चौद सिर पर चढ़ ओया। घड़ियाली ने निवेदन किया कि "महाराज ? आधी रात के निकट है ।" राजा की आँखों में नींद आ रही यी; व्यास कथा कहते थे पर राजा को ऊँघ आती थी वह उठकर रनवास में गया।
जड़ाऊ पंलग और फूलों की सेज पर सोया । रानियों पैर दाबने लगीं राजा की ऑख झप गई तो स्वप्न में क्या देखता है कि वह बड़ा संगमर्मर का मंदिर बनकर बिलकुल तैयार हो गया, जहाँ कहीं उस पर नक्कासी का काम किया है वहाँ उसने. बारीकी और सफाई में हाथीदांत को भी मात कर दिया है, जहाँ कहीं पच्चीकारी का हुन दिखालाया है वहाँ जवाहिरों को पत्थरों में जड़ तसवीर का नमूना बना दिया । कहीं लालों के गुलालों पर नीलम की बुलबुले बैठी हैं और बोस की जगह हीरों के लोलक लटकाए हैं । कहीं पुखराज की डडिगों के पन्ने के पत्ते निकाल कर मोतियों के भुट्ठ लगाए हैं । सोने की में चोबो पर शामियाने और उनके नीचे विल्लौर के हौज़ों में गुलाव और केवड़े के फुहारे छूट रहे हैं । मानों धूप जल रहा है, सैकड़ों कपूर के दीपक बल रहे हैं । राजा देखते ही मारे घमंड के फूल कर मशक बन गया। कभी नीचे कभी ऊपर, कभी दाहने कभी बाएँ निगाह करता और मन में सोचता कि अब इतने पर भी मुझे क्या कोई स्वर्ग में घुसने से रोकेगा या पवित्र पुण्यात्मा न कहेगा ? मुझे अपने कर्मों का भरोसा है, दूसरे किमी से क्ण काम पड़ेगा।
इसी अर्से में वह राजा उस सपने के मन्दिर में खड़ा खड़ा क्या देखता है कि एक ज्योति सी उसके सामने आसमान से उतरी चली आती है । उसका प्रकाश तो हजारो सूर्य से भी अधिक है परन्तु जैसे सूर्य को बादल घेर लेता