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पुनरुद्धार करना है। इन नाटकों से प्रसाद जी की भाषा-शैली का वास्तविक रूप से पता चलता है | भावावेश नाटकों की प्रधानता है । नाटककार स्वयं कवि हैं । इसलिये कथोपकथन में उनके कवित्वपूर्ण हृदय का अच्छा चित्र प्राप्त होता है। मानवी भावनाओं का सुन्दर चित्रण प्रसाद जी ने किया है। इनकी रचना मे उर्दू पदावली का अभाव है, शैलीशुद्ध संस्कृत
शब्दों के अनुकूल है । न तो क्लिष्ट ही है न साधारण ही । यद्यपि प्रसाद । जी ने संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग कम किया है, किन्तु भाषा, गम्भीर, विशुद्ध और परिमार्जित रूप में अकित हुई है । लेखक ने जहाँ भावात्मक विचारों का कथन किया है वहाँ उसने सरल वाक्यों का प्रयोग किया है। प्रसाद जी की रचनाओं में मुहाविरों की प्रायः कमी पाई जाती है-फिर भी माधुर्य और व्यजना में न्यूनता नहीं आने पाई । धारा-प्रवाह का गुण प्रसाद जी की भाषा में अधिक पाया जाता है। ऐसे स्थल पर जहाँ भावावेश होता है, रोचक विवरण देने में लेखक ने सुन्दर पदावली और छोटे वाक्यों का
आश्रय लिया है । भाषा प्रायः परिपक्व और प्रोजस्वी है । नाटकों के अतिरिक्त लेखक ने मौलिक कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं । उनकी भी शैली भावावेश की अोर अधिक है। मानव हृदय की अनुभूतियों का चित्रण करने में प्रसाद जी सफल रचनाकार हैं। विषय निर्वाचन, शब्दचयन और वाक्य-विन्यास सभी इनकी कहानियों में सुन्दर हैं। चमत्कारिकता के साथसाथ वास्तविकता के अंकन में भी इनको गद्य शैली विशेष सफल हुई है। इस प्रकार प्रसाद जी की गद्य-शैली चमत्कारपूर्ण, सरस और मार्मिक है। उससे हिन्दी गद्य को-विशेषतः नाटक और कहानी-रचना में विशेष बल प्राप्त हुआ है।
बदरीनाथ भट्ट हिन्दी के विनोदात्मक साहित्य के सुजन में भट्ट जी का विशेष हाथ __है। 'गोलमाल कारिणी सभा' की रिपोर्टों और 'मिस्टर की डायरी' के नोटों
को जिन लोगों ने पढ़ा है वे भट्ट जी की विनोदात्मक शैली की प्रशंसा किये