________________
साहित्योपासक]
१९५ 'प्रवीण ने ईट का जवाब पत्थर से दिया-मेरा विचार है, कि आपने वर्तमान कवियों का अध्ययन नहीं किया, या किया, तो ऊपरी आँखों से । ___राजा साहब ने अब प्रवीय की जबान बन्द कर देने का निश्चय ... किया-आप मिस्टर परांजपे हैं। प्रवीण जी, आपके लेख अंगरेजी पत्रों में अपते हैं और बड़ी श्रादर की दृधि से देखे जाते हैं। . इसका प्राशय यह था, कि अब आप ज्यादा न बहकिए।। , .
प्रवीण समझ गये। परांजपे के सामने उन्हें नीचा देखना पड़ा । विदेशी वेशभूषा और भाषा का यह भक्त इतना सम्मान पाये, यह उनके लिये असम था; पर करते क्या?
उसी वेश के एक दूसरे सज्जन पाए । राजा साहब ने तपाक से उनका अभिवादन किया-आइये गक्टर चड्ढा, कैसे मिजाज हैं ?
डाक्टर साहब ने राजासाहब से हाथ मिलाया और फिर प्रवीण की ओर जिज्ञासा-भरी आँखों से देखकर पूछा-आपकी तारीफ !
'राजा साहब ने प्रवीण का परिचय दिया-आप महाशय प्रवीगा है। आप भाषा के अच्छे कवि और लेखक है।
गक्टर साहब ने एक खास अन्दाज से कहा-'अच्छा! आप कवि हैं। और बिना कुछ पूछे आगे बढ़ गये। . .
फिर उसी वेश के रक और महाशय पधारे। यह नामी वैरिस्टर थे। राजा साहब ने उनसे भी प्रवीण का परिचय कराय। उन्होंने भी उसी अंदाज़ से कहा-'प्रच्छा! श्राप कवि हैं !' और आगे बढ़ पाये। ___ यह अभिनय कई बार हुआ। और हर बार प्रवीण को यही दाद मिली-'अच्छा! आप कवि हैं !
यह वाक्य हर बार प्रवीण के हृदय पर एक नया आघात पहुँचाता था। उसके नीचे जो भाव था वह प्रवीण खूब समझते थे। उसका सीधा. मादा आशय यह था-तुम अपने खयाली पुलाव पकाते हो सो पकावो यहाँ तुम्हारा क्या प्रयोजन १ तुम्हारा इतना 'साहस कि तुम इस सभ्य समाज में वेघड़क आयो।