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___[हिन्दी-मका निर्माण - फिर उपस्थित सज्जनों से उनका परिचय देने लगे-आपने महायर प्रवीण का नाम तो सुना ही होगा । वह आप ही हैं। क्या मावं है, सा प्रसाद है, क्या भोज है, क्या भाव है, क्या भाषा है, स्या सम है, स्स चमत्कार है, क्या प्रभाव है, कि वाह ! वाह ! मेरी तो आत्मा जैसे बल करने लगती है।
एक सज्जन ने जो, अँगरेजी सूट में ग्रे, प्रवीण को ऐसी निगाह से देखा, मानों वह चिड़ियाघर के कोई जीव हों; और बोले-मापने अमरेवी के कवियों का भी अध्ययन किया है-बाइरन, शेली कोट्स श्रादि ।
प्रवीण ने रुखाई से जवाब दिया-जी हाँ, थोड़ा बहुत देखा वो है।
'श्राप इन महाकवियों में से किसी की रचनाओं का अनुवाद कर में तो आप हिन्दी भाषा की अमर सेवा करें।
प्रवीण अपने को बाइरन, शेली आदि से जो भर भी कम न समझते ये । ये अगरेज़ी के कवि थे, उनकी भाषा,शैली, विषय, व्यसना, सभी अंग्रेजी की रुचि के अनुकूल यौ। उनका अनुवाद करना वह अपने लिए गोरव की वात न समझते थे, उसी तरह जैसे वे उनकी रचनामों का अनुवाद करना अपने लिये गौरव की वस्तु न समझते। बोले-हमारे यहाँ आत्मदर्शन का अभी इतना अभाव नहीं है, कि हम विदेशी कवियों से भिक्षा मामे मेरा विचार है, कि कम से कम इस विषय में भारत अब भी पश्चिम कोन सिखा सकता है।
यह अनर्गल बात थी । अँगरेजी के भक्त महाशय ने प्रवीण कोपागल समझा।
. राजा साहब ने प्रवीण को ऐसी आँखों से देखा.जो कह रही थीजरा मौका-महल देखकर बातें करो, और वोले-अँगरेजी साहित्य का स्प पूछना १ कविता में तो वह अपना जोड़ नहीं रखता।।
अंगरेजी के भक्त महाशय ने प्रवीण को सगर्व नेत्रों से देखा- हमारे कवियों ने अभी तक कविता का अर्थ ही नहीं समझा। अभी तक नियोग और नख-सिख को कविता का आधार बनाये हुए हैं।